रविवार, 19 अगस्त 2012

ना वो सब मद्रासी हैं, ना हम सब चिंकी'

पूर्वोत्तर भारत इन दिनों सुर्ख़ियों में ज़रूर है लेकिन इसके बावजूद भारत के अन्य राज्यों में इस क्षेत्र के बारे में न तो अधिक जानकारी है और न ही जानने की इच्छा.
राजधानी दिल्ली के नेताओं और लोगों के लिए पूर्वोत्तर राज्य, दिल्ली से काफी दूर हैं.
इसी तरह से वहां के लोगों के लिए दिल्ली काफी दूर है, कम से कम मनोवैज्ञानिक रूप से.
इसीलिए असम के बोडो इलाके में होने वाली हिंसा का बदला भारत के अन्य राज्यों में रहने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों से लेने की अफवाहें फैलीं, जिनके चलते बैंगलोर, मुंबई, पुणे और हैदराबाद में रह रहे ये लोग अपने प्रांतों की ओर वापस लौटने लगे.
हकीकत ये है की जो लोग इन शहरों से अपने घरों को लौट रहे हैं उनका असम में बोडो और बंगाली मुस्लमानों के बीच चल रहे झगड़े से कोई संबंध नहीं.

जानकारी की कमी

पुणे में असम के छात्र अनिल कोलिता कहते हैं, "बदला लेना वैसे भी कानून को हाथ में लेना है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य के सभी लोगों से बदला लेना इस बात का संकेत है की लोगों को इस क्षेत्र के बारे में कुछ नहीं मालूम जो हमें पहले से ही पता है."
ये नतीजा है देश में पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में जानकारी की कमी का.
पूर्वोत्तर क्षेत्र के तमाम सात राज्यों के लोगों को भारत में उसी तरह से देखा जाता है जिस तरह से दक्षिण भारत के लोगों को.
पिमिन्गम जिमिक नागालैंड राज्य में पैदा हुए. अब वो पुणे में नागा छात्रों के नेता हैं.
वो कहते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में लोगों को जानकारी देने की ज़रुरत है, "हम पुणे में लोगों को बताने की कोशिश करते हैं की पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों में समानता है भी और नहीं भी, लोग हमें यहां चिंकी कह कर बुलाते हैं, और समझते हैं की पूर्वोत्तर राज्यों के रहने वाले सभी लोग चिंकी हैं जैसा की दक्षिण भारत में रहने वाले सभी लोग मद्रासी."

उत्तरपूर्व राज्यों में विविधता

"लोग हमें यहां चिंकी कह कर बुलाते हैं, और समझते हैं की पूर्वोत्तर राज्यों के रहने वाले सभी लोग चिंकी हैं जैसा की दक्षिण भारत में रहने वाले सभी लोग मद्रासी."
पिमिन्गम जिमिक, नागा छात्र नेता
इस क्षेत्र के लोग एक दूसरे से कितने अलग हैं इसका अंदाजा इस तरह से कीजिए.
पिमिन्गम जिमिक एक नागा कबीले से वास्ता रखते हैं. उन्हें पूर्वोत्तर राज्यों के दूसरे लोगों से अंग्रेजी में बात करनी होती है.
नागा कबीले में 32 अलग-अलग छोटे कबीले हैं जो 32 अलग-अलग भाषा बोलते हैं. अगर एक नागा को दूसरे नागा कबीले से बात करनी हो तो वो या तो अंग्रेज़ी में करते हैं या फिर नागामी भाषा में जो कई स्थानीय भाषाओँ का मिश्रण है.
नागालैंड के अलावा नागा कबीलों की सबसे अधिक आबादी मणिपुर और मयांमार में है.
मणिपुर में आठ ज़िले हैं. पांच पहाड़ों पर हैं, जिनमें अधिक नागा रहते हैं, और वो वादी के तीन ज़िलों में रहने वाले वैष्णवी हिन्दुओं से बिलकुल अलग हैं.
नागा और कुकी क़बीलों में आपस में नहीं बनती. आज़ादी से पहले से उनके बीच कई बार वैसी जानलेवा झड़पें हुईं हैं जैसी बोडो और बंगाली मुसलमानों के बीच इन दिनों असम में हो रही हैं.
इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि नागा क़बीलों के बीच कुकी बस्तियों को अंग्रेज़ों ने बसाया था ताकि वो नागा कबीलों को नियंत्रण में रख सकें.

धार्मिक मतभेद

नागालैंड, मेघालय और मिज़ोरम इस क्षेत्र के तीन ऐसे राज्य हैं जहां लगभग पूरी आबादी कैथोलिक मज़हब को मानती है जबकि बोडोलैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ कैथोलिक इलाकों को छोड़ कर क्षेत्र के बाक़ी सभी इलाकों में हिन्दूओं का बहुमत है.
अफवाहों के चलते बैंगलोर, मुंबई, पुणे और हैदराबाद में रह रहे ये लोग अपने प्रांत वापस लौटने लगे.
नागालैंड और मिज़ोरम के देहातों में आम जीवन गांव के गिरजाघर के इर्द गिर्द घूमता है. ऐसा असम के बारे में नहीं कहा जा सकता.
अगर समानता है तो ये की इन सभी सात राज्यों के और पड़ोसी सिक्किम राज्य के लोग उत्तरी भारत के लोगों को एक जैसे नज़र आते हैं.
इसीलिए उन्हें ‘चिंकी’ कहा जाता है जो इस क्षेत्र के लोगों को पसंद नहीं.

समानताएं

अगर समानता है तो इन राज्यों के नेताओं में भ्रष्टाचार और घोटाले की. 18 साल पहले जब मैं एक पत्रकार के तौर पर वहां कार्यरत था तब भी भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या थी और आज भी है.
अगर समानता है तो इस बात की कि इन प्रांतों में व्यापक ग़रीबी है. इन राज्यों में उद्योग की कमी है और कृषि के लायक ज़मीनें कम हैं.
कुछ साल पहले तक इन राज्यों में एक उत्तर भारतीय को शक की निगाह से देखा जाता था.
इन राज्यों के लोग इस क्षेत्र से भारत के अन्य राज्यों में जाकर आम तौर से नहीं बसते थे लेकिन पिछले कुछ सालों में इनका दिल्ली, मुंबई और दूसरे बड़े शहरों में जाकर काम करने की ओर रुझान देखा गया है.
वो भारतीय समाज की मुख्यधारा का हिस्सा महसूस करने लगे थे. लेकिन हाल की घटनाओं के बाद इस एहसास को वापस लाने में कुछ समय लग सकता है.

ज़ुबैर अहमद
बीबीसी संवाददाता, मुंबई