hi pant ji tumhara blog dekha. bahut achha laga. aksar log pahad ki sundarta ki hi batein karte hai lekin koi pahad ke dard, uski pida ki batein nahi karta. shayad use dekhna hi nahi chahta. use samajhta nahi hai ya samjhna nahi chahta. kai bar pahado mei jeevan jeene wale log bhi. pahadi logo ka jeevan aur dard kis tarah se pahado se joda hai tumhare blog mei jakar mehsos kiya. good lage raho dost.
उत्तराखंड का बेहद खूबसूरत जिला है चमोली। इसी जिले के पिलंग गांव से मेरी पैदाइश, परवरिश और पहचान जुड़ी है। मैं खुशनसीब हूं कि पहाड़ों की खुशनुमा रूमानियत की गोद में चिड़ियों की चहचहाट सुनते-सुनते बड़ा हुआ। इत्तफाकन जिज्ञासा ही मेरा पेशा बन गई। पत्रकारिता में बारह वर्षों का यह सफर देहरादून, दिल्ली, कश्मीर से राजस्थान तक ले आया। फिलवक्त दैनिक भास्कर, जयपुर में स्थानीय संपादक।
हैलॊ हिमालय इसलिए
हिमालय के सुनहरे शिखर, बल खाती नदियां और गहरी घाटियों का बेखुद कर देने वाला सौंदर्य तो आप सबने देखा है लेकिन क्या आप पहाड़ के आतंकित, गमगीन और दर्द से थरथराते चेहरों से भी रूबरू हुए हैं? क्या आपको यह भी पता है कि प्रदूषण के दर्द से चीखते पहाड़, बाजार के शिकारियों के डर से कांपते जंगल और सिकुड़ते हिमनदों से हांफती नदियां आज किन हालातों में हैं? और आखिर क्यों चीड़ देवदार के घने झुरमुटों से अब जिंदगी की रोशनी नहीं बल्कि उपेक्षा, निराशा का एक अजीब सा आंतिकत कर देने वाला अंधेरा निकल रहा है। पहाड़ की पुरसुकून सुबह भी अब क्यों सिर्फ सूनी और सांय-सांय करती महसूस होती है। हैलो हिमालय, दरअसल पहाड़ की इसी पीड़, दुख और चुप्पी को तोड़ने और हिमालय से डायलॉग करने की कोशिश भर है। यह कोशिश इसलिए भी है क्योंकि अगर हिमालय नहीं होगा को हम भी नहीं होंगे।
लक्ष्मी प्रसाद पंत
हिमालय है तो हम हैं
हिमालय के बारे में वह सब कुछ जो आप चाहते हैं जानना
भारत के उत्तर में स्थित विशाल पर्वत श्रृंखला हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों से अलग करता है। इसका सामरिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व भारत के लिए बहुत ज्यादा है। इनमें दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) समेत अनेक चोटियां, सुंदर घाटियां और महाखड्ड हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत के उत्तर में हिमालय की विशाल पर्वत श्रृंखला नहीं होती तो भारत का एक बड़ा हिस्सा शीत मरुस्थल के रूप में होता। कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय न सिर्फ भारत की हिफाजत कर रहा है, बल्कि, इनकी मोहक घाटियां और विविधतापूर्ण जैव पारिस्थितिकी देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होने के साथ-साथ अब तक अबूझ पहेली बनी हुई हैं। हिमालय में कई समानांतर पर्वत श्रंृखलाएं हैं। कश्मीर हिमालय में कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल जैसी चोटियां हैं। इसके उत्तर-पूर्व में वृहत हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच एक ठंडा मरुस्थल है। यहां की कश्मीर घाटी और डल झील दुनिया भर में प्रसिद्ध है। महत्वपूर्ण हिमानी नदियां बलटोरो और सियाचीन भी यहीं हैं। वृहत हिमालय में जोजीला, पीरपंजाल में बानिहाल, जास्कर में फोटुला और लद्दाख में खुर्दुंगला जैसे मह्तवपूर्ण दर्रे हैं। विश्व की कुछ बड़ी नदियां गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, चांग, मेकॉंग, सालविन, लाल नदी (एशिया), झुनजियांग, चाओ फ्राया, इरावदी नदी, अमु दरिया, साइर दरिया, तरीम और पीली नदी हिमालय से ही निकलती है। इसके अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल, बर्मा, कंबोडिया, तजाकिस्तान, तुर्किस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकस्तान, थाइलैंड, लाओस, वियतनाम, मलेशिया और पाकिस्तान के करीब 3 बिलियन लोगों ( दुनिया की करीब आधी आबादी) का भविष्य किसी न किसी रूप में हिमालय से जुड़ा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला की लंबाई करीब 2500 किलोमीटर और चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर तक है। हिमालय की उत्पत्ति : दुनिया की पर्वत श्रंखलाओं में हिमालय सबसे युवा है और विशेषज्ञों का कहना है कि अब भी निर्माण की प्रक्रिया जारी है। यह मुख्य रूप से सेजीमेंट्री और मेटामॉरफिक चट्टानों से बना है। प्लेट विवर्तनिक सिद्धांतों के अनुसार हिमालय का निर्माण महाद्वीपीय टक्कर से हुआ है। मान्यताओं के मुताबिक इंडो ऑस्ट्रेलियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से हिमालय का उत्थान संभव हो सका। महाद्वीपीय टक्कर की शुरुआत करीब 70 मिलियन साल पहले हुई, जब इंडो-ऑस्टे्रलियन प्लेट 15 सेमी प्रति वर्ष उत्तर की ओर सरकने लगी। बाद में यह यूरोशियन प्लेट से टकरा "ई। विशेषज्ञों का मत है कि जहां अभी हिमालय है, वहां पहले टेथिस सागर था। करीब 50 मिलियन वर्ष पहले इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट और यूरोशियन प्लेट में टक्कर के कारण टेथिस सागर की तलहट्टी में भू-गर्भीय हलचल हुई और हिमालय का उत्थान संभव हो सका। माना जा रहा है कि महाद्वीपीय विस्थापन की प्रक्रिया अब भी जारी है और इस कारण हिमालय का निर्माण भी हो रहा है। प्लेटों के खिसकने के कारण ही म्यांमार में अराकम योमा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और बंगाल की खाड़ी का निर्माण संभव हो सका है। विशेषज्ञों का कहना है कि इंडो-ऑस्टे्रलियन प्लेट अब भी 67 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से खिसक रही है, और अगले 10 लाख वर्षों के बाद एशिया में यह करीब 1500 किलोमीटर खिसक चुकी होगी। इस भू-गर्भीय सक्रियता के कारण 5 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से हिमालय की ऊंचाई भी बढ़ रही है। इसी कारण भूकंप की दृष्टि से पूरा हिमालयी क्षेत्र काफी सक्रिय है। हिमालय में करीब 15000 ग्लेशियर हैं, जिनमें ताजे पानी का विशाल भंडार (१७,२८,००,००,००,००० घन किलोमीटर) मौजूद है। 70 किलोमीटर लंबा सियाचीन ग्लेशियर ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। इसके अलावा गंगोत्री, यमुनोत्री, नुब्रा, बैफो आदि ग्लेशियर भी हिमालय में हैं। दूसरी ओर, इन तमाम विविधताओं के बावजूद ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभाव से हिमालय भी अछूता नहीं रहा है।
Visitometer
पहाड पर बढते कदम
जानें पहाडी प्रदेशॊं कॊ
असम क्षेत्रफल 78,438 वर्ग कि. जनसंख्या 26,638,407 राजधानी दिसपुर मुख्य भाषाएं असमिया
'असम' शब्द संस्कृत के 'असोमा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। लेकिन आज ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि यह शब्द मूल रूप से 'अहोम' से बना है। ब्रिटिश शासन में इसके विलय से पूर्व लगभग छह सौ वर्षो तक इस भूमि पर अहाम राजाओं ने शासन किया। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्न जातियां प्राचलन काल से इस प्रदेश की पहाडियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहां की मिश्रित संस्कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्कृति और सभ्यता की समृद्ध परंपरा रही है।प्राचीनकाल में असम को 'प्राग्ज्योतिष' अर्थात् 'पूर्वी ज्योतिष का स्थान' कहा जाता था। बाद में इसका नाम 'कामरूप' पड़ गया। कामरूप राज्य का सबसे प्राचीन उल्लेख इलाहाबाद में समुद्रगुप्त के शिलालेख में मिलता है। चीन का विद्वान यात्री ह्ववेनसांग लगभग 743 ईसवी में राजा कुमार भास्कर वर्मन के निमंत्रण पर कामरूप में आया। उसने कामरूप का उल्लेख 'कामोलुपा' के रूप में किया। 11वीं शताब्दी के अरब इतिहासकार अल बरूनी की पुस्तक में भी कामरूप का उल्लेख मिलता है। सन 1228 में पूर्वी पहाडियों पर अहोम लोगों के पहुंचने से इतिहास में नया मोड़ आया उन्होंने लगभग छह सौ वर्षे तक असम पर शासन किया। सन 1826 में यह क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के क्षेत्राधिकार में आ गया जब बर्मी लोगों ने यंडाबू संधि के अनुसार असम को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया।असम पूर्वोत्तर भारत का प्रहरी और पूर्वोत्तर राज्यों का प्रवेशद्वार है। यह भूटान और बंगलादेश से लगी भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के समीप है। असम के उत्तर में भूटान और अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण में मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा हैं।कृषिअसम कृषि प्रधन राज्य है। खेती यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। चावल यहां की मुख्य खाद्य फसल है। जूट, चाय कपास, तिलहन, गन्ना, आलू आदि नकदी फसलें हैं। राज्य की मुख्य बागवानी फसलें हैं: संतरा, केला, अनन्नास, सुपारी, नारियल, अमरूद, आम, कटहल और नीबू, जाति के फल। वनअसम अपनी वन संपदा तथा जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के लिए प्रसिद्ध है, जोकि कुल वन क्षेत्र के 22.21 प्रतिशत हैं। वन्यजीवराज्य में पांच राष्ट्रीय पार्क और 11 वन्यजीव अभयारण्य और पक्षी विहार हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस बाघ परियोजना (राष्ट्रीय उद्यान) क्रमश: एक सींग वाले गैंडों और रॉयल बंगाल टाइगर के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।उद्योगअसम में कृषि पर आधारित उद्योगों में चाय का प्रमुख स्थान है। राज्य में छह औद्योगिक विकास केंद्र हैं। इसके अलावा बालीपाड़ा और माटिया में दो औद्योगिक विकास केंद्र और खोले जा रहे हैं। इस समय राज्य में चार तेलशोधक कारखाने काम कर रहे हैं, जिनमें से एक डिगबोई में है। अपनी कला और हस्तशिल्प से जड़े कुटीर उद्योग के लिए असम हमेशा से विख्यात रहा है। हथकरघा, रेशम, बेंत और बांस की वस्तुएं, गलीचों की बुनाई, काष्ठ शिल्प, पीतल तथा अन्य धातुओं के शिल्प आदि यहां के प्रमुख कुटीर उद्योगों में शामिल हैं। असम में कई किस्म का रेशम, जैसे-एंडी, मूगा, टसर आदि का उत्पादन होता है। मूगा रेशम की एक ऐसी किस्म है जिसका उत्पादन विश्व में सिर्फ असम में होता है।परिवहनसडकें: असम में सड़कों की कुल लंबाई 37,515 किलोमीटर थी जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 2,754 कि.मी. शामिल है। भारत-बंगलादेश सीमा पर 27 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने एवं 160 किलोमीटर सीमा पर कांटेदार तार-बाड़ लगाने का कार्य पूरा किय जा चुका हैं। रेलवे: इस समय असम में रेलमार्गो की लंबाई 2,284.28 किलोमीटर है जिसमें छोटी रेल लाइन 1,227.16 कि.मी. और बड़ी लाइन 1,057.12 कि.मी. शामिल हैं। विमान सेवा: नागारिक विमानों की नियमित उड़ानें लोकप्रिय गोपीनाथ बाड़दोलाई हवाई अड्डा (गुवाहाटी), सलोनीबाड़ी (तेजपुर), मोहनबाड़ी (उत्तरी लखीमपुर), कुंभीरग्राम (सिलचर), और रोवरियाह (जोरहाट) से होती हैं। त्योहारअसम में अनेक रंगारंग त्यौहार मनाए जाते हैं। 'बिहू' असम का मुख्य पर्व है। यह साल में तीन बार मनाया जाता है- रंगाली बिहू या बोहाग बिहू फसल बुबाई की शुरूआत का प्रतीक है और इससे नए वर्ष का भी शुभारंभ होता है। भोगली बिहू या माघ बिहू फसल कटाई का त्योहार है और काती बिहू या कांगली बिहू शरद ऋतु का एक मेला है। वैष्णव लोग प्रमुख वैष्णव संतों की जयंती तथा पुण्सयतिथि पर दिन भर भजन गाते हैं तथा परंपरागत नाट्यशैली में 'भावना' का मंचन करते हैं। कामाख्या मंदिर में अंबुबाशी और उमानंदा तथा शिव मंदिरों के निकट स्थित अन्य स्थानों पर शिवरात्रि मेला, दिवाली, अशोक अष्टमी मेला, पौष मेला, परशुराम मेला, अंबुकाशी मेला, दोल-जात्रा, ईद, क्रिसमस और दुर्गा पूजा, आदि अन्य धार्मिक त्योहार भी राज्य में श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं।पर्यटन स्थलगुवाहाटी में तथा उसके आसपास प्रमुख पर्यटन स्थलों में कामाख्या मंदि, उमानंदा (मयूरद्वीप), नवग्रह मंदिर वशिष्ठ आश्रम, डोलगोबिंद, गांधी मंडप, राज्य का चिडियाघर, राज्य संग्रहालय, शुक्रेश्वर मंदिर, गीता मंदिर, पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण मदन कामदेव मंदिर और सरायघट पुल शामिल हैं। अन्य दर्शनीय स्थल हैं-काजीरंगा राट्रीय पार्क (एक सींग वाले गैंडों के लिए प्रसिद्ध) मानस बाघ परियोजना, पोबीतोरा और ओरंग (वन्यजीव उद्यान), शिवसागर (शिव मंदि, रंगघर,कारेंगघर), तेजपुर (भैरवी मंदिर और रमणीक सथान), भलुकपुंग (अंगलिंग), हॉफलांग (स्वास्थ्यप्रद स्थन और जतिंगा पहाडियां), माजुली (विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप), चंदुबी झील (पिकनिक स्थल), हाजो (बौद्ध, हिंदू और इस्लाम की मिलनस्थली), बताद्रव (महान वैष्णव संत शंकरदेव की जन्मभूमि) आर सुआलकूची (रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध)।
अरुणाचल प्रदेश
क्षेत्रफल 83,743 वर्ग किलोमीटर जनसंख्या 1,097,968 राजधानी ईटानगर मुख्य भाषाएं मोनपा, मिजी, अका, शेरदुकपेन, निशी, अपतानी,तगिन, अदी, दिगारू-मिशमी, इदु-मिशमी, मिजु-मिशमी, खमटी, नोकटे, तंगसा और वांचू
अरुणाचल प्रदेश को पहले पूर्वात्तर सीमांत एजेंसी (नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी-नेफा) के नाम से जाना जाता था। इसके पश्चिम, उत्तर-पूर्व, उत्तर और पूर्व में क्रमश: भूटान, तिब्बत चीन, और म्यांमार की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हैं। अरुणाचल प्रदेश की सीमा नगालैंड और असम से भी मिलती है। कामेंग, सुबनसिरी, सिआंग, लोहित और तिरप नदियां इन्हें अलग-अलग घाटियों में बांट देती हैं। इस क्षेत्र के इतिहास के बारे में कोई लिखित रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। केवल मौखिक परंपरा के रूप में कुछ साहित्य और अनेक ऐतिहासिक खंडहर हैं जो इस पर्वतीय क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। समय-समय पर की गई खुदाइयों और खोजबीन के परिणामस्वरूप निचले इलाकों से पता चलता है कि ये ईसवी सन प्रारंभ होने के समय के हैं। इन ऐतिहासिक प्रमाणों से यह भी पता चलता है कि यह न केवल जाना-पहचाना क्षेत्र था बल्कि जो लोग यहां रहते थे उनका देश के अन्य भागों से निकट संबंध था। अरुणाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास 24 फरवरी, 1826 को संपन्न हुई यंडाबू संधि के बाद असम में ब्रिटिश शासन लागू होने से शुरू होता हैं।
सन 1962 से पहले इस क्षेत्र को नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था संवैधानिक रूप से यह असम का एक हिस्सा था। परंतु इस क्षेत्र के सामरिक महत्व के कारण 1965 तक यहां के प्रशासन की देखभाल विदेश मंत्रालय करता था। उसके बाद असम के राज्पाल के माध्यम से यहां का प्रशासन गृह मंत्रालय के अधीन आया। सन 1972 में इसे केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया और इसका नया नामकरण अरुणाचल प्रदेश किया गया। इसके पश्चात् 20 फरवरी, 1987 को यह भारतीय संघ का 24वां राज्य बना।
लोक नृत्य राज्य के कुछ महत्वपूर्ण त्योहारों में अदीस लोगों द्वारा मनाए जाने वाले मापिन और सोलंगु, मोनपा लोगों का त्योहार लोस्सार, अपतानी लोगों का द्री, तगिनों का सी-दोन्याई, इदु-मिशमी समुदाय का रेह, निशिंग लोगों का न्योकुम आदि शामिल हैं। अधिकांश त्योहारों के अवसर पर पशुओं को बलि चढ़ाने की प्रथा है। कृषि और बागवानीअर्थव्यवस्था मुख्यत: झूम खेती पर आधरित है। अब नकदी फसलों, जैसे-आलू और बागावानी की फसलों जैसे सेब, संतरे और अनन्नास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
विभिन्न व्यापारों में दस्तकारों को प्रशिक्षण प्रदान करना, रोइंग, टबारीजो, दिरांग, युपैया और मैओ में राज्य में कार्यरत पांच सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) हैं। आईटीआई युपैया अरुणाचल प्रदेश में महिलाओं के लिए विशिष्ट रूप से बनाया गया आईटीआई है जो पापुम पारे जिले में स्थित है।
परिवहनसड़कें: अरुणाचल प्रदेश में 330 किलोमीटर लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग है।
राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं- तवांग, दिरांग, बोमडिला, टीपी, ईआनगर, मालिनीथन, लीकाबाली, पासीघट, अलोंग, तेजू, मियाओ, रोइंग, दापोरिजो, नामदफा, भीष्मकनगर, परशुराम कुंड और खोंसा।
हिमाचल प्रदेश
क्षेत्रफल 55,673 वर्ग कि.मी. जनसंख्या 6,077,900 राजधानी शिमला मुख्य भाषा हिंदी और पहाड़ी
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्य में स्थित है, जिसे देव भूमि कहते हैं। पूरे राज्य में पत्थर और लकड़ी के अनेक मंदिर हैं। यहां की छायादार घाटियां, ऊंचे नीचे पहाड़, ग्लेशियर और विशाल पाइन वृक्ष और गरजती नदियां तथा विशिष्ट जीव जंतु मिलकर हिमाचल के लिए एक मधुर संगीत रचना तैयार करते हैं। शिमला अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,000 वर्ग कि.मी. में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत तबलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि.मी. हो गया।
कृषि 69 प्रतिशत कामकाजी आबादी को सीधा रोजगार मुहैया कराती है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र से होने वाली आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पाद का 22.1 प्रतिशत है। कुल भौगोलिक क्षेत्र 55.673 लाख हेक्टेयर में से 9.79 लाख हेक्टेयर भूमि के स्वामी 9.14 लाख किसान हैं। मंझोले और छोटे किसानो के पास कुल भूमि का 86.4 प्रतिशत भाग है। राज्य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है। लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा-सिंचित है और किसान इंद्र देवता पर निर्भर रहते हैं। वर्ष 2006-07 में खाद्यान्न उत्पादन 16 लाख मिलियन टन रहा ।
बागवानी के अंतर्गत आने वाले प्रमुख फल हैं-सेब, नाशपाती, आडू, बेर, खूमानी, गुठली वाले फल, नींबू प्रजाति के फल, आम, लीची, अमरूद और झरबेरी आदि। 1950 में केवल 792 हेक्टेयर क्षेत्र बागवानी के अंतर्गत था, जो बढ़कर 2.23 लाख हेक्टेयर हो गया है। इसी तरह,1950 में फल उत्पादन 1200 मीट्रिक टन था, जो 2007 में बढकर 6.95 लाख टन हो गया है। सड़केंहिमाचल प्रदेश राज्य में यहां की सड़कें ही यहां की जीवन रेखा हैं और ये संचार के प्रमुख साधन हैं। इसके 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 36,700 किलोमीटर में बसाहट है, जिसमें से 16,807 गांव अनेक पर्वतीय श्रृखलाओं और घाटियों के ढलानों पर फैले हुए हैं। उत्पादन क्षेत्रों और बाजार केंद्रों को जोड़ने वाली सड़कों के निर्माण के महत्व को समझते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने अगले तीन वर्षों में हर पंचायत को सड़क से जोड़ने का फैसला किया है। जब यह राज्य 1948 में अस्तित्व में आया, तो यहां केवल 288 कि.मी. लंबी सड़कें थीं जो 15 अगस्त 2007 तक बढ़कर 30,264 हो गई हैं। जैव प्रौद्योगिकीजैव प्रौद्योगिकी के महत्व को देखते हुए राज्य में विद्यमान जैव-प्रौद्योगिकी की संभावनाओं के दोहन पर विशषे ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए अलग से जैव-प्रौद्योगिकी विभाग खोला गया है। राज्य ने अपनी जैव-प्रौद्योगिकी नीति तैयार की है। सरकार की तरु से जैव-प्रौद्योगिकी इकाइयों को वही रियायतें दी जा रही हैं जो अन्य औद्योगिकी इकाइयों को मिलती हैं। राज्य सरकार का सोलन जिले में जैव-प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना का प्रस्ताव है।
वानिकी राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। वन रिकार्ड के अनुसार कुल वन क्षेत्र 37,033 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 16,376 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जहां पहाड़ी चरागाह वाली वनस्पतियां नहीं उगाई जा सकतीं क्योंकि यह स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है। विश्व बैंक ने मध्य हिमालय में समन्वित जलाशय विकास परियोजना के लिए 365 करोड़ रूपये स्वीकृत किए हैं। यह परियोजना अगले छह वर्षो में 10 जिलों के 42 विकास खंडों की 545 पंचायतों मे क्रियान्वित की जाएगी। राज्य में 2 राष्ट्रीय पार्क और 32 वन्यजीवन अभयारण्य हैं। वन्यजीवन अभयारण्य के अंतर्गत कुल क्षेत्र 5,562 कि.मी., राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत 1,440 कि.मी. है। इस तरह कुल संरक्षित क्षेत्र 7,002 कि.मी. है। पर्यटन उद्योग को हिमाचल प्रदेश में उच्च प्राथमिकता दी गई है और हिमाचल सरकार ने इसके विकास के लिए समुचित ढांचा विकसित किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र हवाई अड्डे यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्वास्थ्य सेवाएं शामिल है। राज्य सरकार राज्य को ‘हर सूरत में गंतव्य’ का रूप देने के लिए कटिबद्ध है। राज्य पर्यटन विकास निगम राज्य की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ वार्षिक आय का योगदान करता है। वर्ष 2007 में राज्य में 8.3 मिलियन पर्यटक आए जिनमें 2008 लाख विदेशी थे। राज्य में तीर्थो और नृवैज्ञानिक महत्व के स्थलों का समृद्ध भंडार है। राज्य को व्यास, पाराशर, वसिष्ठ, मार्कण्डेय और लोमश आदि ऋषियों के निवास स्थल होने का गौरव प्राप्त है। गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक और मानव निर्मित झीलें, उन्मुक्त विचरते चरवाहे पर्यटकों के लिए असीम सुख और आनंद का स्रोत हैं।
वर्ष 2006-07 के लिए, राज्य में पर्यटन विकास के लिए 6276.38 लाख रुपये का आवंटन है। भारत सरकार ने 8 करोड़ रुपये कुल्लू-मनाली-लाहौल एवं स्पीति तथा लेह मठ परिसर के लिए 21 करोड़ रुपये कांगड़ा, शिमला और सिरमौर क्षेत्र के लिए, 16 करोड़ रुपये बिलासपुर-मंडी और चंबा क्षेत्र के लिए, 30 लाख रूपये मनाली में पर्यटन सूचना केंद्र के निर्माण के लिए स्वीकृत किए हैं। त्योहारों और अन्य बड़े अवसरों के लिए 1,545 परियोजनाओं हेतु 67.57 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
जम्मू और कश्मीर
क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग कि.मी. जनसंख्या 10,069,987 राजधानी श्रीनगर (ग्रीष्मकाल में) जम्मू (शीतकाल में) मुख्य भाषाएं उर्दू, डोगरी, कश्मीरी, लद्दाखी, बाल्टी, पहाड़ी, पंजाबी, गुजरी और ददरी।
राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया। किंतु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह पृथ्वी पर स्वर्ग कहलाने वाली कश्मीर घाटी अस्तित्व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सग्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया।
यद्यपि सन 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य (सन 697 से सन 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान, और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितरदित्य ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया। कश्मीर में इस्लाम का आगमन 13 वीं और 14वीं शताब्दी में हुआ। मुस्लिम शासको में जैन-उल-आबदीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए, जो कश्मीर में उस समय सत्ता में आए, जब तातरो के हमले के बाद हिंदू राजा सिंहदेव भाग गए। बाद में चक शासकों ने जैन-उल-आवदीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और सन 1586 तक कश्मीर पर राज किया। सन 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। सन 1752 में कश्मीर तत्कालीन कमजोर मुगल शासक के हाथ से निकलकर अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया।
जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन स्वरूप पर नया प्रकाश पड़ा है। जम्मू 22 पहाड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। डोगरा शासक राजा मालदेव ने कई क्षेत्रों को जीतकर अपने विशाल राज्य की स्थापना की। सन 1733 से 1782 तक राजा रंजीत देव ने जम्मू पर शासन किया किंतु उनके उत्तराधिकारी दुर्बल थे, इसलिए महाराजा रंजीत सिंह ने जम्मू को पंजाब में मिला लिया। बाद में उन्होंने डोगरा शाही खानदान के वंशज राजा गुलाब सिंह को जम्मू राज्य सौंप दिया। गुलाब सिंह रंजीत सिंह के गवर्नरों में सबसे शक्तिशाली बन गए और लगभग समूचे जम्मू क्षेत्र को उन्होंने अपने राज्य में मिला लिया। सन 1947 में जम्मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा। इसके बाद महाराज हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
जम्मू और कश्मीर राज्य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। पहला पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है; दूसरा, पर्वतीय क्षेत्र जिसमें शिवालिक पहाडियां शामिल हैं; तीसरा कश्मीर घाटी के पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा चौथा क्षेत्र तिब्बत से लगा लद्दाख और करगिल क्षेत्र। भौगोलिक तथा सांस्कृतिक रूप से राज्य के तीन जिला क्षेत्र जम्मू कश्मीर और लद्दाख हैं।
उद्योग कश्मीर के प्रमुख हस्तशिल्प उत्पादों में कागज की लुगदी से बनी वस्तुएं, लकड़ी पर नक्काशी, कालीन, शाल और कशीदाकारी का सामान शामिल हैं। हस्तशिल्प उद्योग में 3.40 लाख कामगार लगे हुए हैं। उद्योगों की संख्या बढ़ी है। करथोली, जम्मू में 19 करोड़ रूपये का निर्यात प्रोत्साहन औद्योगिक पार्क बनाया गया है। ऐसा ही एक पार्क ओमपोरा, बडगाम में बनाया जा रहा है। जम्मू में शहरी हाट हैं जबकि इसी तरह के हाट श्रीनगर में बनाए जा रहे है। राग्रेथ श्रीनगर में 6.50 करोड़ रूपये की लागत से सॉफ्टेवयर टेक्नोलॉजी पार्क शुरू किया गया है। कृषिराज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूं और मक्का यहां की प्रमुख फसलें हैं। कुछ भागों में जौ, बाजरा और ज्वार उगाई जाती है। लद्दाख में चने की खेती होती है। फलोद्यानों का क्षेत्रफल 242 लाख हेक्टेयर है। राज्य में 2000 करोड़ रूपये के फलों का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है जिसमें अखरोट निर्यात के 120 करोड़ रूपये भी शामिल हैं। 25 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष अथवा रूप से बागवानी क्षेत्र से रोजगार मिलता हैं।
शिक्षा जनगणना 2001 के अनुसार राज्य की साक्षरता दर 54.46 प्रतिशत है; ग्रामीण साक्षरता 48.22 प्रतिशत और शहरी साक्षरता 72.17 प्रतिशत हैं। राज्य में पुरूष साक्षरता अनुमानत: 67.75 प्रतिशत और महिला साक्षरता 41.82 प्रतिशत हैं। यहां पांच विश्वविद्यालय और 41 महाविद्यालय हैं जिनमें से 8 निजी क्षेत्र के हैं।
परिवहन सड़कें: राज्य में लोक निर्माण विभाग द्वारा रखरखाव की जाने वाली सड़कों की लंबाई 15,012 कि.मी. तक पहुंच गई है।
रेलवे: अब तक रेल सेवाएं केवल जम्मू तक उपलब्ध हैं। जम्मू-उधमपुर रेल लाइन के निर्माण का काम पूरा हो गया है। न्ीनगर तथा बारामुला तक रेलमार्ग विस्तार का काम शुरू हो गया है।उधमपुर-कटरा और काजीगुंज-बारामुला रेल लिंक परियोजना एक राष्ट्रीय परियोजना है जिसके 2007 तक पूरा होने की संभवना है। उड्डयन: श्रीनगर, जम्मू और लेह राज्य के मुख्य हवाई अड्डे हैं जो जम्मू और कश्मीर को हवाई मार्ग से देश के अन्य भागों से जोड़ते हैं। श्रीनगर हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाया गया है।
त्योहारआश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी को रावण पर राम की विजय के प्रतीक रूप में दशहरा या वियजदशमी का त्योहार मनाया जाता है। शिवरात्रि भी जम्मू और कश्मीर में श्रद्धा और भाक्ति के साथ मनाई जाती है। राज्य में मनाए जाने वाले चार मुस्लिम त्योहार हैं-ईद-उल-फितर, ईद-उल-जुहा, ईद-ए-मिलाद-उन्नबी और मेराज आलम। मुहर्रम भी मनाया जाता हैं। लद्दाख का विश्व प्रसिद्ध गोम्पा उत्सव जून महीने में मनाया जाता है। हेमिस उत्सव का प्रमुख आकर्षक मुखौटा नृत्य है। लेह में स्पितुक बौद्ध विहार में हर साल जनवरी में होने वाले पर्व में काली की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर प्रदर्शित की जाती हैं। इसके अलावा सर्दी के चरम का त्योहार लोहड़ी तथा रामबन और पड़ोस के गांवों में सिंह संक्रांति और अगस्त माह में भदरवाह में मेला पात मनाया जाता हैं।
पर्यटन स्थल कश्मीर की डल झील में फूल बेचने वालेकश्मीर घाटी को पृथ्वी का स्वर्ग माना जाता है। कश्मीर घाटी में चश्मेशाही झरना, शालीमार बाग, डल झील, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और अमरनाथ की पर्वत गुफा तथा जम्मू के निकट वैष्णो देवी मंदिर, पटनी टाप और लद्दाख के बौद्ध मठ राज्य के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। 15 सितंबर को लद्दाख महोत्सव तथा जून सिंधु दर्शन प्रसिद्ध त्योहार हैं।
उत्तराखंड
क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किलोमीटर जनसंख्या 8,489,349 राजधानी देहरादून मुख्य भाषा हिंदी, अंग्रेजी, (गढवाली और कुमाऊंनी स्थानीय बोलियां है)
उत्तराखंड का उल्लेख प्राचीन धर्मग्रंथों में केदारखंड, मानसखंड और हिमवंत के रूप में हुआ है। इस क्षेत्र पर कुषाणों, कुनिंदों, कनिष्क, समुद्रगुप्त, पौरवों, कत्यूरियों, पालों, चंद्रों, पंवारों और ब्रिटिश शासकों ने समय-समय पर राज किया है। इसके पवित्र स्थलों और तीर्थस्थलों के कारण बहुधा इसे देवताओं की धरती ‘देवभूमि’ कहा जाता है। वर्तमान उत्तराखंड राज्य पहले आगरा और अवध संयुक्त प्रांत का हिस्सा था। यह प्रांत 1902 में अस्तित्व में आया। सन 1935 में इसे संक्षेप में केवल संयुक्त प्रांत कहा जाने लगा। जनवरी 1950 में संयुक्त प्रात का नाम ‘उत्तर प्रदेश’ रखा गया। 9 नंवबर, 2000 को भारत का 27वां राज्य बनने से पूर्व तक उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना रहा।
हिमालय की तलहटी में स्थित उत्तराखंड राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं उत्तर में चीन (तिब्बत) और पूर्व में नेपाल से मिलती हैं। इसके उत्तर पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश हैं।
उद्योग और खनिज राज्य में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम के प्रचुर भंडार हैं। राज्य में 25294 लघु औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें 63,599 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा 20,000 करोड़ रूपये के निवेश वाले 1802 भारी तथा मंझोले उद्योगों में 5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अधिकांश उद्योग वन- आधारित हैं। राज्य में कुल 54,047 हस्तशिल्प उद्योग हैं।
परिवहनसडकें: उत्तराखंड में पक्की सडकों की कुल लंबाई 21,490 किलोमीटर है। लोक निर्माण विभाग की सड़कों की लंबाई 17,772 कि.मी., स्थानीय निकायों द्वारा बनाई गई सड़कों की लंबाई 3,925 कि.मी. हैं। रेलवे: प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं: देहरादून, हरिद्वार, रूड़की, कोटद्वार, काशीपुर, हल्द्वानी, ऊधमसिंह नगर, रामनगर और काठगोदाम।
उड्डयन: जौली ग्रांट (देहरादून) और पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में हवाई पटिटयां हैं। नैनी-सैनी (पिथौरागढ), गौचर (चमोली) और चिनयालिसौर (उत्तरकाशी) में हवाई पट्टियां बनाई जा रही हैं। पवनहंस लि. ने रूद्र प्रयाग से केदारनाथ तक तीर्थ यात्रियों के लिए हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की है। त्योहारविश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला/अर्द्ध कुंभ मेला हरिद्वार में प्रति बारहवें/छठे वर्ष के अंतराल में मनाया जाता है। अन्य प्रमुख मेले/त्योहार हैं: देवीधुरा मेला (चंपावत), पूर्णागिरि मेला (चंपावत), नंदा देवी मेला (अल्मोड़ा), गौचर मेला (चमोली), बैसाखी (उत्तरकाशी), माघ मेला (उत्तरकाशी), उत्तरायणी मेला (बागेश्वर), विशु मेला (जौनसार बावर), पीरान कलियार (रूड़की), और नंदा देवी राज जात यात्रा हर बारहवें वर्ष होती है।
पर्यटन स्थल तीर्थयात्रियों/पर्यटकों के आकर्षण के प्रमुख स्थल हैं: गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुंड साहिब, नानकमत्ता, आदि। कैलाश मानसरोवर की यात्रा कुमाऊं क्षेत्र से होकर की जाती है। विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी, पिंडारी ग्लेसियर, रूपकुंड, दयारा, बुग्याल, औली तथा मसूरी, देहरादून, चकराता, नैनीताल, रानीखेत, बागेश्वर, भीमताल, कौसानी और लैंसडाउन जैसे पर्वतीय स्थल पर्यटकों के आकर्षण के महत्वपूर्ण स्थल हैं।
6 टिप्पणियां:
hi pant ji
tumhara blog dekha. bahut achha laga. aksar log pahad ki sundarta ki hi batein karte hai lekin koi pahad ke dard, uski pida ki batein nahi karta. shayad use dekhna hi nahi chahta. use samajhta nahi hai ya samjhna nahi chahta. kai bar pahado mei jeevan jeene wale log bhi. pahadi logo ka jeevan aur dard kis tarah se pahado se joda hai tumhare blog mei jakar mehsos kiya. good lage raho dost.
RENU KHANTWAL
hello sir,
aap ka blog dekha achchha laga. photo ka chayan bara mast laga.
aage bhi main aap ka balog dekhata rahunga.
thanks Sir.......
jangir_rajesh
hi
ab jada achha lag raha hai.shabd bhi saf pade ja rahe hain. good
renu
hi lpp
photos ki sankhiya bhi badaiye janab. matra 3-4 photo se kam nahi chalega. samjhe?
renu khantwal
hi
naya kam kab dikhega? gati badaiye maharaj.
renu khantwal
आप भी ब्लॉग पर हैं, चलिए अच्छा है। इसी बहाने संपर्क होता रहेगा...
एक टिप्पणी भेजें