इसरो द्वारा हाल ही में किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में हिमालय की बिगड़ती हालत को लेकर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जबकि आठ फीसदी ऎसे ग्लेशियर हैं जो उन्नत हैं और 17 फीसदी ही स्थिर हैं। इसरो की यह रिपोर्ट आईपीसीसी की उस विवादित रिपोर्ट के बाद आई है, जिसमें इस संगठन ने दावा किया था कि 2035 तक हिमनद गायब हो जाएंगे।
इसरो की दूसरी रिपोर्ट: पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कराए गए इस शोध में 2190 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया था। हाल में जारी हुई यह ग्लेशियरों पर इसरों की दूसरी रिपोर्ट है। मार्च 2010 में 1317 ग्लेशियरों पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया था कि 1962 के बाद ये ग्लेशियर 16 फीसदी तक पीछे हट चुके हैं।
इस प्रोजेक्टर में 50 विशेषज्ञ और 14 संगठन शामिल थे, जिन्होंने पाया कि इन पंद्रह वर्ष के दौरान औसतन 3.75 किमी के ग्लेशियर पिघले हैं। जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवायरॉन्मेंट एंड डेवेलपमेंट, कश्मीर यूनीवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय भी इस शोध में लगा रहा। विशेषज्ञों ने हिमालय का जमीनी दौरा भी किया और जो तथ्य सामने आए उसका शोध के परिणामों से मिलान भी किया। ऎसा पहली बार है कि हिमालय के ग्लेशियरों पर कोई वृहद अध्ययन हुआ है। इस रिपोर्ट का अंतरराष्ट्रीय समुदाय बेसब्री से इंतजार कर रहा है।
रिसोर्ससैट-1: मरीन, जियो एंड प्लेनेटरी साइंस ग्रुप (एमपीएसजी) स्पेस एप्लीकेंशन्स सेंटर अहमदाबाद के मुताबिक, इस शोध का डाटा जल्द ही प्रकाशित कर दिया जाएगा। हिमालय की ये तस्वीरें इसरो के सैटेलाइट रिसोर्ससैट-1 द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं। सैटेलाइट 1989 से 2004 तक हिमायल के वृहद भू-भाग की पल-पल बदलती परिस्थितियों की तस्वीरें उपलब्ध कराता रहा।
इसरो की दूसरी रिपोर्ट: पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कराए गए इस शोध में 2190 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया था। हाल में जारी हुई यह ग्लेशियरों पर इसरों की दूसरी रिपोर्ट है। मार्च 2010 में 1317 ग्लेशियरों पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया था कि 1962 के बाद ये ग्लेशियर 16 फीसदी तक पीछे हट चुके हैं।
इस प्रोजेक्टर में 50 विशेषज्ञ और 14 संगठन शामिल थे, जिन्होंने पाया कि इन पंद्रह वर्ष के दौरान औसतन 3.75 किमी के ग्लेशियर पिघले हैं। जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवायरॉन्मेंट एंड डेवेलपमेंट, कश्मीर यूनीवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय भी इस शोध में लगा रहा। विशेषज्ञों ने हिमालय का जमीनी दौरा भी किया और जो तथ्य सामने आए उसका शोध के परिणामों से मिलान भी किया। ऎसा पहली बार है कि हिमालय के ग्लेशियरों पर कोई वृहद अध्ययन हुआ है। इस रिपोर्ट का अंतरराष्ट्रीय समुदाय बेसब्री से इंतजार कर रहा है।
रिसोर्ससैट-1: मरीन, जियो एंड प्लेनेटरी साइंस ग्रुप (एमपीएसजी) स्पेस एप्लीकेंशन्स सेंटर अहमदाबाद के मुताबिक, इस शोध का डाटा जल्द ही प्रकाशित कर दिया जाएगा। हिमालय की ये तस्वीरें इसरो के सैटेलाइट रिसोर्ससैट-1 द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं। सैटेलाइट 1989 से 2004 तक हिमायल के वृहद भू-भाग की पल-पल बदलती परिस्थितियों की तस्वीरें उपलब्ध कराता रहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें