रस्किन बॉन्ड
नींद खुली तो फैक्टरी के सायरन सरीखी वह दूरस्थ गूंज सुनाई दी, लेकिन वह वास्तव में मेरे सिरहाने मौजूद नींबू के दरख्त पर एक झींगुर की मीठी भिनभिनाहट थी। हम खुले में सो रहे थे। इस गांव में जब मैं पहली सुबह जागा था तो छोटी-छोटी चमकीली पत्तियों को देर तक निहारता रहा था। पत्तियों के पीछे पहाड़ थे।
आकाश के अनंत विस्तार की ओर लंबे-लंबे डग भरता हिमालय। हिंदुस्तान के अतीत की अलसभोर में एक कवि ने कहा था ‘हजारों सदियों में भी हिमालय के वैभव का बखान नहीं किया जा सकता’ और वाकई तब से अब तक कोई भी कवि इस पहाड़ के भव्य सौंदर्य का वास्तविक वर्णन नहीं कर पाया है।
हमने हिमालय के सर्वोच्च शिखर को अपने कदमों तले झुका लिया, लेकिन इसके बावजूद वह हमारे लिए सुदूर, रहस्यपूर्ण और आदिम बना हुआ है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हिमालय की धुंध भरी तराइयों में रहने वाले लोग विनम्र और धर्यवान होते हैं।
मैं कुछ दिनों के लिए इन्हीं लोगों का मेहमान हूं। मेरा दोस्त गजधर मुझे अपने गांव लेकर आया है। गढ़वाल घाटी में स्थित इस गांव का नाम है मंजरी। यह मेरी चौथी सुबह है। तीन सुबहों से मैं चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर जाग रहा था, लेकिन आज झींगुर की गुनगुनाहट में चिड़ियों के सभी गीत डूब गए हैं।
अलबत्ता अभी भोर ही है, लेकिन मुझसे पहले सभी लोग जाग चुके हैं। पहलवानों सरीखी काया वाला गजधर आंगन में कसरत कर रहा है। वह जल्द से जल्द सेना में दाखिल होना चाहता है। उसका छोटा भाई भैंसें दुह रहा है। मां चूल्हा फूंक रही है। छोटे बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।
गजधर के पिता फौज में हैं, लिहाजा वे अधिकतर वक्त घर से दूर रहते हैं। गजधर कॉलेज पढ़ने जाता है तो उसकी मां और भाई खेती-बाड़ी का काम संभालते हैं। चूंकि गांव नदी से ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए वे मानसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। एक गिलास गर्म दूध पीने के बाद मैं, गजधर और उसका छोटा भाई घूमने निकल पड़ते हैं।
धूप पहाड़ों पर रेंग रही है, लेकिन वह अभी तक संकरी घाटियों में नहीं उतरी है। हम नदी में नहाते हैं। गजधर और उसका भाई एक बड़ी-सी चट्टान से नदी में गोता लगाते हैं, लेकिन मैं एहतियात बरतना चाहता हूं। पानी के वेग और गहराई का मुझे अभी अंदाजा नहीं है। साफ और ठंडा पानी सीधे ग्लेशियरों से पिघलकर आ रहा है।
मैं जल्दी से नहाता हूं और फिर रेत में दुबककर बैठ जाता हूं, जहां अब धूप घुसपैठ करने लगी है। हम फिर पहाड़ की ऊंचाई से जूझने के लिए चल पड़ते हैं। रास्ते में पहले स्कूल आता है और फिर एक छोटा-सा मंदिर। एक दुकान भी आती है, जहां से साबुन, नमक और अन्य जरूरी चीजें खरीदी जा सकती हैं। यह गांव का डाकघर भी है।
डाकिया अभी तक नहीं पहुंचा है। तकरीबन तीस मील दूर स्थित लैंसडोन से डाक आती है। डाकिये को आठ मील के दायरे में अनेक गांवों तक संदेश पहुंचाना होता है और वह यहां दोपहर तक ही पहुंच पाता है। वह डाकिये के साथ ही खबरनवीस की भूमिका भी निभाता है, क्योंकि गांववालों को देश-दुनिया की खबरें सुनाने की जिम्मेदारी उसी की है। हालांकि गांववाले उसकी अधिकांश खबरों को मनगढ़ंत मानते हैं, इसीलिए जब उसने बताया था कि आदमी चांद पर पहुंच गया है तो किसी ने भी उसकी बात पर यकीन नहीं किया था।
गजधर एक पत्र का इंतजार कर रहा है। उसे सेना की प्रवेश परीक्षा के नतीजों का इंतजार है। यदि वह पास हो गया तो उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा। यदि वह वहां भी कामयाब हो गया तो उसे ट्रेनिंग दी जाएगी। दो साल बाद वह सेकंड लेफ्टिनेंट बन जाएगा। सेना में बारह साल बिताने के बावजूद उसके पिता अभी तक महज कापरेरल ही हैं। लेकिन उसके पिता कभी स्कूल नहीं गए थे। उन दिनों इस इलाके में स्कूल थे ही नहीं।
जब हम गांव के स्कूल के समीप से गुजरते हैं तो मुझे देखकर बच्चे दौड़े चले आते हैं और हमें घेरकर खड़े हो जाते हैं। उन्होंने इससे पहले कभी कोई गोरा चेहरा नहीं देखा था। गांव के बड़े-बुजुर्गो ने ब्रिटिश फिरंगियों को देखा था, लेकिन बीते कई सालों से गांव में कोई यूरोपियन नहीं आया है। बच्चों की नजर में मैं कोई अजीब-सा जंतु हूं। वे पूरी मुस्तैदी से मेरा मुआयना करते हैं और फिर एक-दूसरे के कानों में कुछ फुसफुसाते हैं। उन्हें लगता है मैं घुमक्कड़ लेखक नहीं, बल्कि दूसरे ग्रह से आया एक प्राणी हूं।
गजधर के लिए यह दिन उसके धर्य का इम्तिहान है। पहले हमें खबर मिलती है कि भूस्खलन के कारण सड़क जाम हो गई है और आज डाकिया गांव नहीं आएगा। फिर हमें पता चलता है कि भूस्खलन से पहले ही डाकिया उस जगह को पार कर चुका था। अफवाह तो यह भी है कि डाकिये का कहीं कोई पता-ठिकाना नहीं है। जल्द ही यह अफवाह झूठी साबित होती है। डाकिया पूरी तरह सुरक्षित है। बस उसका चिट्ठियों का झोला ही गुम हुआ है!
और फिर, दोपहर दो बजे डाकिया नमूदार होता है। वह हमें बताता है कि भूस्खलन हुआ जरूर था, लेकिन किसी और रास्ते पर। किसी शरारती लड़के ने सारी अफवाहें फैलाई थीं। लेकिन हमें संदेह है कि इन अफवाहों में डाकिये का भी कुछ न कुछ योगदान रहा होगा।
जी हां, गजधर इम्तिहान में पास हो गया है और कल सुबह वह इंटरव्यू देने मेरे साथ रवाना हो जाएगा। एक दिन में तीस मील का सफर तय करने के लिए हमें जल्दी उठना पड़ेगा। लिहाजा अपने दोस्तों और पड़ोस में रहने वाले गजधर के भावी ससुर के साथ शाम बिताने के बाद हम सोने चले जाते हैं। मैं नींबू के उसी दरख्त के नीचे अपनी चारपाई पर लेटा हूं। आकाश में चांद अभी नहीं उगा है और दरख्त के झींगुर भी चुप्पी साधे हुए हैं।
मैं तारों जड़े आकाश के तले चारपाई पर पसर जाता हूं और आंखें मूंद लेता हूं। मुझे लगता है दरख्त और उसकी पत्तियों को कोई धीमे-से सहलाकर आगे बढ़ गया है। रात की हवा में नींबू की ताजी महक फैल जाती है। मैं इन लम्हों को ताउम्र नहीं भुला पाऊंगा।
नींद खुली तो फैक्टरी के सायरन सरीखी वह दूरस्थ गूंज सुनाई दी, लेकिन वह वास्तव में मेरे सिरहाने मौजूद नींबू के दरख्त पर एक झींगुर की मीठी भिनभिनाहट थी। हम खुले में सो रहे थे। इस गांव में जब मैं पहली सुबह जागा था तो छोटी-छोटी चमकीली पत्तियों को देर तक निहारता रहा था। पत्तियों के पीछे पहाड़ थे।
आकाश के अनंत विस्तार की ओर लंबे-लंबे डग भरता हिमालय। हिंदुस्तान के अतीत की अलसभोर में एक कवि ने कहा था ‘हजारों सदियों में भी हिमालय के वैभव का बखान नहीं किया जा सकता’ और वाकई तब से अब तक कोई भी कवि इस पहाड़ के भव्य सौंदर्य का वास्तविक वर्णन नहीं कर पाया है।
हमने हिमालय के सर्वोच्च शिखर को अपने कदमों तले झुका लिया, लेकिन इसके बावजूद वह हमारे लिए सुदूर, रहस्यपूर्ण और आदिम बना हुआ है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हिमालय की धुंध भरी तराइयों में रहने वाले लोग विनम्र और धर्यवान होते हैं।
मैं कुछ दिनों के लिए इन्हीं लोगों का मेहमान हूं। मेरा दोस्त गजधर मुझे अपने गांव लेकर आया है। गढ़वाल घाटी में स्थित इस गांव का नाम है मंजरी। यह मेरी चौथी सुबह है। तीन सुबहों से मैं चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर जाग रहा था, लेकिन आज झींगुर की गुनगुनाहट में चिड़ियों के सभी गीत डूब गए हैं।
अलबत्ता अभी भोर ही है, लेकिन मुझसे पहले सभी लोग जाग चुके हैं। पहलवानों सरीखी काया वाला गजधर आंगन में कसरत कर रहा है। वह जल्द से जल्द सेना में दाखिल होना चाहता है। उसका छोटा भाई भैंसें दुह रहा है। मां चूल्हा फूंक रही है। छोटे बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।
गजधर के पिता फौज में हैं, लिहाजा वे अधिकतर वक्त घर से दूर रहते हैं। गजधर कॉलेज पढ़ने जाता है तो उसकी मां और भाई खेती-बाड़ी का काम संभालते हैं। चूंकि गांव नदी से ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए वे मानसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। एक गिलास गर्म दूध पीने के बाद मैं, गजधर और उसका छोटा भाई घूमने निकल पड़ते हैं।
धूप पहाड़ों पर रेंग रही है, लेकिन वह अभी तक संकरी घाटियों में नहीं उतरी है। हम नदी में नहाते हैं। गजधर और उसका भाई एक बड़ी-सी चट्टान से नदी में गोता लगाते हैं, लेकिन मैं एहतियात बरतना चाहता हूं। पानी के वेग और गहराई का मुझे अभी अंदाजा नहीं है। साफ और ठंडा पानी सीधे ग्लेशियरों से पिघलकर आ रहा है।
मैं जल्दी से नहाता हूं और फिर रेत में दुबककर बैठ जाता हूं, जहां अब धूप घुसपैठ करने लगी है। हम फिर पहाड़ की ऊंचाई से जूझने के लिए चल पड़ते हैं। रास्ते में पहले स्कूल आता है और फिर एक छोटा-सा मंदिर। एक दुकान भी आती है, जहां से साबुन, नमक और अन्य जरूरी चीजें खरीदी जा सकती हैं। यह गांव का डाकघर भी है।
डाकिया अभी तक नहीं पहुंचा है। तकरीबन तीस मील दूर स्थित लैंसडोन से डाक आती है। डाकिये को आठ मील के दायरे में अनेक गांवों तक संदेश पहुंचाना होता है और वह यहां दोपहर तक ही पहुंच पाता है। वह डाकिये के साथ ही खबरनवीस की भूमिका भी निभाता है, क्योंकि गांववालों को देश-दुनिया की खबरें सुनाने की जिम्मेदारी उसी की है। हालांकि गांववाले उसकी अधिकांश खबरों को मनगढ़ंत मानते हैं, इसीलिए जब उसने बताया था कि आदमी चांद पर पहुंच गया है तो किसी ने भी उसकी बात पर यकीन नहीं किया था।
गजधर एक पत्र का इंतजार कर रहा है। उसे सेना की प्रवेश परीक्षा के नतीजों का इंतजार है। यदि वह पास हो गया तो उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा। यदि वह वहां भी कामयाब हो गया तो उसे ट्रेनिंग दी जाएगी। दो साल बाद वह सेकंड लेफ्टिनेंट बन जाएगा। सेना में बारह साल बिताने के बावजूद उसके पिता अभी तक महज कापरेरल ही हैं। लेकिन उसके पिता कभी स्कूल नहीं गए थे। उन दिनों इस इलाके में स्कूल थे ही नहीं।
जब हम गांव के स्कूल के समीप से गुजरते हैं तो मुझे देखकर बच्चे दौड़े चले आते हैं और हमें घेरकर खड़े हो जाते हैं। उन्होंने इससे पहले कभी कोई गोरा चेहरा नहीं देखा था। गांव के बड़े-बुजुर्गो ने ब्रिटिश फिरंगियों को देखा था, लेकिन बीते कई सालों से गांव में कोई यूरोपियन नहीं आया है। बच्चों की नजर में मैं कोई अजीब-सा जंतु हूं। वे पूरी मुस्तैदी से मेरा मुआयना करते हैं और फिर एक-दूसरे के कानों में कुछ फुसफुसाते हैं। उन्हें लगता है मैं घुमक्कड़ लेखक नहीं, बल्कि दूसरे ग्रह से आया एक प्राणी हूं।
गजधर के लिए यह दिन उसके धर्य का इम्तिहान है। पहले हमें खबर मिलती है कि भूस्खलन के कारण सड़क जाम हो गई है और आज डाकिया गांव नहीं आएगा। फिर हमें पता चलता है कि भूस्खलन से पहले ही डाकिया उस जगह को पार कर चुका था। अफवाह तो यह भी है कि डाकिये का कहीं कोई पता-ठिकाना नहीं है। जल्द ही यह अफवाह झूठी साबित होती है। डाकिया पूरी तरह सुरक्षित है। बस उसका चिट्ठियों का झोला ही गुम हुआ है!
और फिर, दोपहर दो बजे डाकिया नमूदार होता है। वह हमें बताता है कि भूस्खलन हुआ जरूर था, लेकिन किसी और रास्ते पर। किसी शरारती लड़के ने सारी अफवाहें फैलाई थीं। लेकिन हमें संदेह है कि इन अफवाहों में डाकिये का भी कुछ न कुछ योगदान रहा होगा।
जी हां, गजधर इम्तिहान में पास हो गया है और कल सुबह वह इंटरव्यू देने मेरे साथ रवाना हो जाएगा। एक दिन में तीस मील का सफर तय करने के लिए हमें जल्दी उठना पड़ेगा। लिहाजा अपने दोस्तों और पड़ोस में रहने वाले गजधर के भावी ससुर के साथ शाम बिताने के बाद हम सोने चले जाते हैं। मैं नींबू के उसी दरख्त के नीचे अपनी चारपाई पर लेटा हूं। आकाश में चांद अभी नहीं उगा है और दरख्त के झींगुर भी चुप्पी साधे हुए हैं।
मैं तारों जड़े आकाश के तले चारपाई पर पसर जाता हूं और आंखें मूंद लेता हूं। मुझे लगता है दरख्त और उसकी पत्तियों को कोई धीमे-से सहलाकर आगे बढ़ गया है। रात की हवा में नींबू की ताजी महक फैल जाती है। मैं इन लम्हों को ताउम्र नहीं भुला पाऊंगा।
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