मंगलवार, 3 नवंबर 2009

खुशी तितली की तरह


रस्किन बॉण्ड

खुशी उतनी ही दुर्लभ है, जितनी कि तितली। हमेशा खुशी के पीछे-पीछे नहीं भागना चाहिए। अगर आप शांत, स्थिर बैठे रहेंगे तो हो सकता है कि वह आपके पास आए और चुपचाप आपकी हथेलियों पर बैठ जाए। लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिए। उन छोटे-छोटे कीमती लम्हों को बचाकर रखना चाहिए क्योंकि वे बार-बार लौटकर नहीं आते।

कोयल पेड़ की चोटी पर बैठकर आवाज लगाती है। एक और गर्मियां आईं और चली गईं। यह मेरे जीवन की पचहत्तरवीं गर्मियां हैं, जो गुजर गईं। यद्यपि मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि पहली पांच गर्मियों के बारे में मुझे ठीक-ठीक कुछ भी याद नहीं है। शुरू-शुरू में जामनगर की एक गर्मी की मुझे याद है। समंदर में पैडल मारते हुए छोटी सी स्टीमर के बाहर देखना।

पूरे कच्छ की खाड़ी में दूर-दूर तक फैलती हुई निगाहें। देहरादून मंे अप्रैल की एक सुबह, आम की खुशबू से भरी बिखरी हुई हवाएं, नई दिल्ली की लंबी, भीषण तपती हुई गर्मियां, खसखस के पर्दे पर पानी डालता हुआ भिश्ती (उन दिनों एयरकंडीशन नहीं हुआ करते थे)। शिमला में गर्मियों से भरा एक दिन, शिमला में ही गर्मियों में पिता के साथ आइसक्रीम खाना। ये सब उन गर्मियों की बातें हैं, जब मेरी उम्र दस साल से कम थी।

मई की एक अलसुबह मेरा जन्म हुआ था। भरी गर्मियों में ही मेरे पैदा होने की भविष्यवाणी थी। सूर्य के जैसा और कुछ भी नहीं है। मैदानी इलाकों में घने छायादार पीपल या बरगद के तले बैठे हुए आप सूरज के और मुरीद हो जाते हैं। पहाड़ों में सूरज आपको अपने ठंडे कमरे से बाहर निकाल लाता है ताकि आप उसकी भव्यता में चहलकदमी कर सकें। बागों को सूरज की रोशनी चाहिए और मुझे चाहिए फूल।

इसलिए हम दोनों ही साथ-साथ सूरज का पीछा करते हैं। इस पृथ्वी ग्रह पर अपने ७५ वर्षो के जीवन में मैंने क्या सीखा? बिलकुल ईमानदारी से कहूं तो बहुत थोड़ा। बड़ों और दार्शनिकों पर भरोसा मत करो। प्रज्ञा उम्र के साथ नहीं आती है। यह आपके साथ ही पैदा होती है। या तो आपके पास प्रज्ञा होती है या नहीं होती है। ज्यादातर समय मैंने बुद्धि की जगह हमेशा अपने मन, अपने संवेगों की आवाज सुनी है और इसकी परिणति हुई है खुशी में।

खुशी उतनी ही दुर्लभ है, जितनी कि तितली। हमेशा खुशी के पीछे-पीछे नहीं भागना चाहिए। अगर आप शांत, स्थिर बैठे रहेंगे तो हो सकता है कि वह आपके पास आए और आपकी हथेलियों पर बैठ जाए। लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिए। उन छोटे-छोटे कीमती लम्हों को बचाकर रखना चाहिए क्योंकि वे बार-बार लौटकर नहीं आते।

एक शांतचित्तता और स्थिरता हासिल करना कहीं ज्यादा आसान होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण वह बिल्ली है, जो हर दोपहरी को सूरज की रोशनी में आराम फरमाने के लिए बालकनी में आकर बैठ जाती है और फिर कुछ घंटे ऊंघती रहती है। एक व्यस्तता भरी सुबह की थकान और तनाव से राहत देने के लिए दोपहर की थोड़ी सुस्ताहट और आराम से बेहतर और कुछ नहीं है।

जैसा कि गारफील्ड कहते हैं : कुछ इसे आलस कहते हैं, मैं इसे गहन चिंतन कहता हूं। किसी धार्मिक आसरे के बगैर जीवन के इस मोड़ पर पहुंचकर मेरे पास उन सब चीजों के बारे में कहने को कुछ है, जो मेरे जीवन में खुशी और स्थिरता लेकर आईं। बेशक किताबें। मैं इन किताबों के बिना जिंदा ही नहीं रह सकता। यहां पहाड़ों पर रहना, जहां हवा साफ और नुकीली है। यहां आप अपनी खिड़की से बाहर नजरें उठाकर उगते और ढलते हुए सूरज के बीच पहाड़ों को अपना माथा ऊंचा उठाए देख सकते हैं।

सुबह सूरज का उगना, दिन का गुजरना और फिर सूरज का ढल जाना। सब बिलकुल अलग होता है। गोधूली, शाम और फिर रात का उतरना। सब एकदम जुदा-जुदा। हमारे चारों ओर ये जो कुछ भी फैला हुआ है, उसके बारीक, गहरे फर्क को हमें समझना चाहिए क्योंकि हम यहां जिंदगी से प्रेम करने, उसे गुनने-बुनने के लिए हैं। किसी दफ्तर के अंदर बैठकर पैसे कमाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कभी-कभी अपनी खिड़की से बाहर देखना चाहिए और देखना चाहिए बाहर बदलती हुई उन रोशनियों की तरफ। ‘रात की हजार आंखें होती हैं और दिन की सिर्फ एक।’ लेकिन लाखों लोगों की जिंदगियों में रोशनी बिखेरने वाला वही चमचमाता हुआ सूरज है।

खुशी का रिश्ता मनुष्य के स्वभाव और संवेगों से भी होता है और स्वभाव एक ऐसी चीज है, जिसके साथ आप पैदा होते हैं, जिसे हमने अपने नजदीक या दूर के पुरखों से पाया होता है और प्राय: हम उनके सबसे खराब जीन को ही अपनी जिंदगी में ढोते हैं : चिड़चिड़ा स्वभाव, अनियंत्रित अहंकार, ईष्र्या, जलन, जो अपना नहीं है उसे हड़प लेने की प्रवृत्ति।

‘प्रिय ब्रूटस, गलतियां हमारे सितारों में नहीं होती हैं। वह हममें ही होती हैं, हमारे भीतर ही छिपी होती हैं..’शेक्सपियर प्राय: इस ओर इशारा करते हैं।

और भाग्य? क्या भाग्य जैसी कोई चीज होती है? लगता है कि कुछ लोगों के पास दुनिया का सारा सौभाग्य है। या यह भी आपके स्वभाव और संवेगों से जुड़ी बात ही है? जो स्वभाव ऐसा है कि खुशी के पीछे भागता नहीं फिरता है, उसे ढेर सारी खुशी मिल जाती है। नर्म, संतोषी और कोई अपेक्षा न करने वाले स्वभाव को तकलीफ नहीं होती। वहीं दूसरी ओर जो अधीर, महत्वाकांक्षी और ताकत की चाह रखने वाले हैं, वे कुंठित होते हैं। भाग्य उन लोगों के साथ-साथ चलता है, जिनका मन थोड़ा स्वस्थ होता है और जो रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्ष से टूट-बिखर नहीं जाते, जिनमें उसका सामना करने की हिम्मत होती है।

मैं बहुत ज्यादा किस्मतवाला हूं। तकदीर का धनी रहा हूं मैं। मुझे सभी भगवानों का पूरा आशीर्वाद मिला है। मैं किसी खास गहरी निराशा, अवसाद और दुख के बगैर ही पचहत्तर साल की इस बूढ़ी और प्रौढ़ अवस्था तक आ चुका हूं। मैंने सीधा-सादा, साधारण और ईमानदार जीवन जिया है। मैंने वे काम किए, जिसमें मुझे सबसे ज्यादा आनंद आता था। मैंने शब्दों को आपस में जोड़-जोड़कर कहानियां गढ़ी और सुनाईं। मैं जिंदगी में ऐसे लोगों को पाने में सफल रहा, जिनसे मैं प्रेम कर सकता और जिनके लिए जी सकता।

क्या यह सब बस यूं ही अचानक हो गया? सब सिर्फ अचानक ही घट गई किस्मत की बात थी या सबकुछ पहले से ही नियत और तयशुदा था या फिर यह मेरे स्वभाव में ही था कि मैं किसी दुख, घाव या चोट के बिना अपनी जिंदगी की यात्रा में इस आखिरी पड़ाव तक पहुंच पाया?

मैं इस जिंदगी को गहरी भावना, आवेग और शिद्दत से भरकर प्यार करता हूं और मेरी तमन्ना है कि यह जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे, चलती रहे। लेकिन हर अच्छी चीज का कभी न कभी अंत तो होता ही है। एक दिन वह अपने अंत के निकट जरूर पहुंचती है। और आखिर में एक दिन जब मेरी रुखसती का, मेरी विदाई का वक्त आए तो मैं उम्मीद करता हूं कि पूरी गरिमा, सुख और खुशी के साथ मैं इस दुनिया से रुखसत हो सकूं।

कोई टिप्पणी नहीं: