असकार का मतलब समझते हो प्रोफेसर सत्या कुमार?
सेवा में,
प्रो.सत्या कुमार
भारतीय वन्य जीव संस्थान
देहरादून, भारत
आदरणीय साहब,
आशा है कि आप स्वस्थ और राजी खुशी होंगे और आपका रिसर्च करने का धंधा भी ठीक-ठाक चल रहा
होगा। हम भी यहां गांव में ठीक-ठाक हैं। ऐसा कब तक चलेगा, ये तो ऊपर वाला ही जानता है लेकिन हमारा अभी तक भी बचे रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है। क्योंकि गांव में सड़क से ऊपर पर्यावरण संरक्षण का शिकंजा है और सड़क से नीचे बन रहे डाम का डंडा हम सब पर बजना शुरू हो चुका है। यहां पिछले कई वर्षों से हम आपका बड़ी बैचेनी से इंतजार कर रहे हैं। हमें लगा कि जो व्यक्ति पर्यावरण का इतना बड़ा पुजारी है कि जिसके शोध के हिसाब से हमारी भेड़-बकरी के खुर पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं, जो नंदा अष्टमी के अवसर पर नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में सदियों से चली आ रही दुबड़ी देवी की पूजा तक को बंद करवाकर इस आजाद देश में धार्मिक स्वतंत्रता के हमारे मौलिक अधिकार तक छीन ले, वह महान वैज्ञानिक हमारे गांव की तलहटी पर बन रहे डाम से होने वाली पर्यावरणीय क्षति को लेकर अवश्य चिंतित होगा और अपनी वैज्ञानिक रिपोर्ट के आधार पर बांध का निर्माण चुटकी बजाते ही रुकवा देगा। अब हमें लगने लगा है कि हो न हो दाल में जरूर कहीं कुछ काला है। अत: इस शंका के निवारण के लिए ही गांव के बड़े बुजुर्गों की सहमति से यह पत्र आपको लिख रहा हूं।
आदरणीय साहब,
आप तो हिमालय के चप्पे-चप्पे में घूमे हैं। आपकी शिव के त्रिनेत्र समान कलम ने हिमालय में निवास करने
वाले लाखों परिवारों की आजीविका और संस्कृति का संहार किया है। पूरे विश्व का बि(क समाज आपके इस
पराक्रम के आगे नत मस्तक है। ऐसे में हे! मनुष्य जाति के सर्वश्रेष्ठ संस्करण, आपकी ही कलम से ध्वस्त हुआ
मैं, धन सिंह राणा और उसका समुदाय, आपको, आपके जीवन के उन गौरवशाली क्षणों की याद दिलाना चाहते हैं, जब आपने हमारा आखेट किया था।
हे ज्ञान के प्रकाश पुंज,
नाचीज, ग्राम लाता का एक तुच्छ जीव है, जो पिछले जन्मों के पापों के कारण मनुष्य योनि में पैदा हुआ। मेरा
गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की नीति घाटी में स्थित है। यह इलाका भारत में पड़ता है और पूरे विश्व में नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व के नाम से जाना जाता है। यदि मेरी स्मृति सही है, तो हमारी भूमि पर आपके कमल रूपी चरण पहली बार संभवत: 1993 में पड़े थे। आप भारतीय सेना के एक अभियान दल के साथ नंदादेवी कोर जोन के भ्रमण पर आए थे, जिसमें सेना के सिपाहियों ने नंदा देवी कोर जोन से कचरा साफ किया था। आपसे दिल की बात कहना चाहता हूं, जिसे आप लोग कचरा कह रहे थे, उसमें अनेक चीजें ऐसी थी कि जिन्हें देखकर हमारी लार टपक रही थी। मुझे याद है कि जब अपने गांव से हम लोग पोर्टर बनकर नंदादेवी बेस कैंप जाते थे, तब महिलाओं का एक ही आग्रह होता था कि बेस कैंप से दो-चार खाली टिन के डिब्बे लाना मत भूलना। टिन के ये खाली डिब्बे हमारे नित्य जीवन में बड़ी सक्रिय भूमिका निभाया करते थे। अभियान दल की वापसी पर आप लोगों द्वारा ग्राम रैंणी के पुल पर एक मीटिंग का भी आयोजन किया था, जिसमें आपने फौज द्वारा लाए गए कचरे को हमारे सामने कुछ ऐसे प्रस्तुत किया था, जैसे कि वह हमारे द्वारा प्रकृति के साथ किए गए अपराध का ठोस सबूत हो।
...जारी
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