गुरुवार, 23 सितंबर 2010

बोल रे मौसम कितना पानी !

 बारिश तो हर मानसून में पहाड़ों पर कहर बरपाती है लेकिन इस बार तो बरसात गजब ढा रही है। हम पहाड़ियों ने कभी नहीं देखी एेसी बारिश। बारिश से पहाड़ आफत में हैं और सैलाब से सबकुछ बह रहा है। जनकवि अतुल शर्मा देहरादून में रहते हैं और बारिश से बदहाल पहाड़ी पीड़ा कोअपनी कविता से कुछ इस तरह बयां कर रहे हैं।
 
बोल रे मौसम कितना पानी !
सिर से पानी गुजर गया
हो गई खतम कहानी
बोल रे मौसम कितना पानी !

झुलसी हुई कहानी है,
आग बरसता पानी है
दबी हुई सांसे जिनकी,
सूनी लाश उठानी है
चीखा जंगल रोया पर्वत
मौसम की मनमानी
बोल रे मौसम कितना पानी

आंसू डूबी झींलें हैं
गाल नदी के गीले हैं,
सूनी लाशें ढूंढ रहीं
आश्वासन की चींलें हैं
देखे कोई समझ न पाये
किसको राहत खानी
बोल रे मौसम कितना पानी

बहाव नदी का दूना है
घर आंगन भी सूना है
सीढ़ीदार खेत बोले
गुम हो गया बिछौना है
नींद आंख से रूठ गई
खून सना है पानी
बोल रे मौसम कितना पानी

-अतुल शर्मा

 

4 टिप्‍पणियां:

sandhyagupta ने कहा…

यह रचना तो पहाड़ के सीने को भी छलनी कर देगी.

Barthwal ने कहा…

आज की स्थिति पर बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति अतुल जी

vandana khanna ने कहा…

badal jana mausam ki aadat hai,or aansuon me doob jana nadi ki...science yaha fail hai, logic jaha nahi cahlte, yaha sirf mausam ki manmani chalti hai....aapko padne ka mauka pehli bar mila, aage b padte rehne ki ummid k sath.... shukriya

बेनामी ने कहा…

Bhai saab, Badal jane ka nam hi to mausam hai na.