रस्किन बॉन्ड
मैं बच्चों के साथ बहुत सहज रहता हूं। एक बार स्कूल की एक नन्ही सी बच्ची ने मुझे अपनी गणित की किताब पर ऑटोग्राफ देने के लिए कहा। ‘लेकिन मैं तो गणित में फेल हो जाता था,’ मैंने कहा। ‘मैं तो सिर्फ कहानी लेखक हूं।’ ‘आपको गणित में कितने नंबर मिलते थे?’ उसने पूछा। ‘सौ में से चार नंबर।’ उस लड़की ने तिरछी नजरों से आंखें तरेरकर मुझे देखा और किताब वापस खींच ली।
ब हुत सारे लोगों के मन में ऐसी छवि बनी हुई है कि जैसे मैं किसी विशालकाय आलीशान भवन में रहता हूं, जो नौकर-चाकरों से भरा हुआ है। वे यह देखकर बहुत निराश होते हैं कि मेरा कमरा बहुत छोटा सा है, जो एक साथ बेडरूम और स्टडी दोनों का काम करता है। मेरा कमरा इस कदर किताबों से ठसाठस भरा हुआ है कि वहां मुश्किल से ही तीन या चार से ज्यादा मेहमान बैठ सकते हैं। कई बार स्कूल के ३क्-४क् बच्चे एक साथ मिलने के लिए चले आते हैं। हो सके तो मैं बच्चों को कभी लौटाता नहीं हूं। लेकिन अगर वे इतनी बड़ी संख्या में हों तो मुझे उनसे सड़क पर मिलना पड़ता है, जिससे सभी को असुविधा होती है।
लेकिन अगर मेरे पास संसाधन होते तो क्या मैं मसूरी के ज्यादा समृद्ध इलाकों में महल जैसे घर में रहना पसंद करता, जहां कोई फिल्मी सितारा या टेलीविजन का कलाकार मेरा पड़ोसी होता? मुझे शक है। तमाम उम्र मैंने एक या दो कमरे के घर में गुजारी है और मुझे नहीं लगता कि मैं ज्यादा ताम-झाम वाले लहीम-शहीम घर की साज-संभाल कर सकता हूं। बाकी के दो कमरों पर मेरे बढ़ते हुए परिवार ने कब्जा कर लिया है, लेकिन वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि मेरे काम में कोई दखल न पड़े। और अगर मैं डूबकर काम कर रहा होऊं या गहरी नींद में होऊं तो वे बिना बताए टपक पड़ने वाले या बिन बुलाए मेहमानों से मेरी रक्षा करते हैं।
और झूठ बोलना तो मैंने भी सीख लिया है, खासकर जब कोई मुझसे स्कूल के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने के लिए कहता है। दो-तीन घंटे बैठकर भाषण सुनना और उसके बाद ये उम्मीद करना कि आप भी ऐसा ही एक भाषण देंगे, मेरे हिसाब से अगर नरक कुछ है तो यही है। विद्यार्थियों के लिए यह नरक है और मेरे लिए भी नरक ही है। अमूमन भाषणों के पहले या बाद में लोकनृत्य, गीत-संगीत का कार्यक्रम और नाटक होते हैं और इन सबसे यंत्रणा और भी बढ़ जाती है। स्पोर्ट डे तो और भी भयानक होते हैं।
भाषण तो आप एक बार न भी सुनें तो चलेगा, लेकिन स्पोर्ट डे में तो दिन भर तपते सूरज के नीचे बैठे रहिए। बस एक लाउडस्पीकर चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करता रहेगा कि नन्हे पुरुषोत्तम ने नौ इंच ऊंची छलांग में स्कूल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आपको कुछ दिखाई भी नहीं देता कि हो क्या रहा है, क्योंकि आप मेहमानों के साथ गुपचुप बतियाने में लगे होते हैं।
पुराने धावक और खिलाड़ी कभी बिरले ही मेरे पास मुझसे मिलने के लिए आते हैं। उनमें से ज्यादातर को पचास के पहले घुटनों की तकलीफ जकड़ लेती है। पुराना टेनिस चैंपियन नंदू मेरे घर की सीढ़ियां नहीं चढ़ पाता है और न ही चांद, जो पहलवान रह चुका है। युवावस्था में शरीर को जरूरत से ज्यादा चलाने और शारीरिक गतिविधियों में लगाए रखने का नतीजा यह होता है कि आगे चलकर शरीर की मशीनरी वक्त से पहले ही साथ छोड़ देती है। जैसाकि नंदू कहता है, ‘मेरा शरीर अब इस बोझ को बिलकुल झेल नहीं सकता है।’ मैं भी कोई बहुत चुस्त-दुरुस्त और फुर्तीला व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन मैं कभी कोई खिलाड़ी-विलाड़ी टाइप का भी नहीं रहा। मैराथन में एक बार मैं आखिर से दूसरे नंबर पर आया था। वही मेरे जीवन की सबसे यादगार उपलब्धि है।
यह बात थोड़ी विचित्र है, लेकिन मेरे छोटे से घर आने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या हनीमून पर आए हुए जोड़ों की होती है। अब वे लोग मेरे पास क्यों आते हैं, पता नहीं। लेकिन वे मेरे पास आकर आशीर्वाद मांगते हैं, इसके बावजूद कि मैं कोई शादी के आशीर्वाद का विज्ञापन तो हूं नहीं। पचहत्तर साल का एक बूढ़ा, गैरशादीशुदा आदमी किसी नए विवाहित जोड़े को आशीर्वाद दे रहा है? शायद उन सभी के मन में ये छवि होगी कि मैं कोई ब्रrाचारी हूं। लेकिन अगर मैं ब्रrाचारी भी होऊं तो उससे उन्हें क्या फायदा होने वाला है?
ऐसा मुश्किल से ही होता है कि मेरे यहां आने वाले जोड़ों में कोई पाठक या पुस्तक प्रेमी हो। फिर एक लेखक को क्यों चुनना भला और वह भी ऐसा लेखक, जो कभी किसी पूजा-प्रार्थना वाली जगह पर नहीं जाता।
खैर जो भी हो, चूंकि ये सभी जोड़े बेहद आकर्षक होते हैं, अपने और समूची मानवता के भविष्य के लिए उदात्त सुंदर उम्मीदों से भरे हुए, इसलिए उन सबसे बात करके मुझे बहुत खुशी होती है। मैं खुश हूं और उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं। और अगर यही वह आशीर्वाद है, जिसकी वे मुझसे कामना करते हैं तो उनका बहुत-बहुत स्वागत है। मेरा हाथ किसी संत-महात्मा या साधु का हाथ नहीं है, लेकिन फिर भी कम-से-कम उन हाथों के इरादे बहुत नेक हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है, जब लोगों ने मुझे कुछ और ही समझ लिया है। जब मेरी पहचान कुछ और ही हो गई।
‘क्या आप श्रीमान पिकविक (चार्ल्ड डिकेंस के पहले उपन्यास द पिकविक पेपर्स का एक पात्र) हैं?’ एक बार एक छोटे से लड़के ने मुझसे पूछा। कम-से-कम वह लड़का डिकेंस को तो पढ़ रहा था। मैंने कहा, ‘नहीं मैं उनका दूर का रिश्तेदार हूं’ और ऐसा कहकर मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करके पिकविक जैसी नजर से उस लड़के को देखा।
मैं बच्चों के साथ बहुत ही सहज रहता हूं, जो बहुत उन्मुक्त होकर और खुलकर बातें करते हैं, सिवाय उस समय के जब उनके माता-पिता भी उनके साथ होते हों अगर माता-पिता साथ हों तब तो फिर सारी बातें सिर्फ वही करते हैं।
एक थोड़ी कम अकल वाली बुद्धू किस्म की मां ने बड़े गर्व से अपने दस साल के बेटे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मेरा बेटा स्कूल में आपकी किताब पढ़ता है। वो आपका ऑटोग्राफ लेना चाहता है।’
मैंने पूछा, ‘तुम जो किताब पढ़ रहे हो, उसका नाम क्या है?’
‘टॉम सॉयर,’ उस लड़के ने तपाक से जवाब दिया।
मैंने उसकी ऑटोग्राफ बुक में ऑटोग्राफ दिया और उस पर लिख दिया - मार्क ट्वेन। ऑटोग्राफ पाकर बच्च काफी खुश हो गया।
स्कूल में पढ़ने वाली एक बच्ची ने मुझे अपनी गणित की किताब पर ऑटोग्राफ देने के लिए कहा।
‘लेकिन मैं तो गणित में फेल हो जाता था,’ मैंने कहा। ‘मैं तो सिर्फ एक कहानी लेखक हूं।’
‘आपको गणित में कितने नंबर मिलते थे?’
‘सौ में से चार नंबर।’
उस लड़की ने तिरछी नजरों से आंखें तरेरकर मुझे देखा और किताब वापस खींच ली। मैंने एनिड ब्लिटॉन, आरके नारायण, इयान बॉथम, डैनियल डैफो, हैरी पॉटर और स्विस फैमिली रॉबिन्सन के नाम से हस्ताक्षर किए हैं। मुझे नहीं लगता कि उनमें से किसी ने भी इस बात का बुरा माना होगा।
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3 हफ़्ते पहले
1 टिप्पणी:
रोचक.
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