जयप्रकाश चौकसे
शेखर कपूर ‘पानी’ के पहले ‘मेलोरी’ नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं, जो जॉर्ज मेलोरी नामक साहसी अंग्रेज के हिमालय के शिखर पर पहुंचने के असफल प्रयास पर आधारित है। 1924 में मेलोरी और साथी एवरेस्ट शिखर से केवल 800 फीट की दूरी पर थे, जब बुरे मौसम ने उन्हें और साथियों को लील लिया। शायद शेखर कपूर पानी और हिमालय के रिश्ते को जानते हैं, परंतु प्रकृति पर वे कोई फिल्म त्रिवेणी नहीं बनाने जा रहे हैं, जबकि विचार उत्तम हो सकता है। आज पूरी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता प्रकृति का संरक्षण है और पानी तथा प्रदूषण इसी व्यापक चिंता का हिस्सा हैं।
संरक्षण का जतन कितना आसान और कठिन भी है, क्योंकि मनुष्य सादगी, किफायत और सदाचार को भूल गया है। क्या हर एक व्यक्ति एक झाड़ लगाकर उसकी सेवा नहीं कर सकता? न जाने यह सरल चीज इतनी कठिन क्यों हो गई है?
बहरहाल शेखर कपूर के साथ जूलिया रॉबर्ट्स भी ‘मेलोरी’ में सहयोगी हैं। उन्हें 1924 में इंग्लैंड के वातावरण को बनाना होगा, जो इसलिए आसान है कि उस देश ने परिवर्तन के साथ अपनी पारंपरिक विरासत को कम से कम एक कोने में संभालकर रखा है। हमारी तरह दूसरे लोग अपनी विरासत के प्रति इतने लापरवाह और उदासीन नहीं हैं। हिमालय अपने आप में अनेक कहानियां समेटे हुए हैं, बल्कि वह स्वयं एक महाकाव्य है।
बर्फ से आच्छादित हिमालय जीवन के रहस्य की तरह अबूझ पहेली है। दुनिया के अन्य इसी तरह के विशाल हिम आच्छादित पहाड़ भी सौंदर्य के धनी हैं, परंतु उनके साथ धार्मिक आख्यान नहीं जुड़े हैं। वैदिक सभ्यता से ही हिमालय के साथ देवी-देवता जुड़े हैं। हमारे अनेक पौराणिक पात्र हिमालय में तप कर चुके हैं। इसी तरह गंगा के साथ जितनी कथाएं जुड़ी हैं, उतनी दुनिया की किसी और नदी के साथ चस्पां नहीं हैं। स्वयं गंगा हिमालय नामक महाकाव्य की ही एक उपकथा है।
मेलोरी अत्यंत साहसी थे। आज हिमालय पर चढ़ने के लिए टेक्नोलॉजी ने अनेक सुविधाएं पैदा कर दी हैं, परंतु मेलोरी के युग में इच्छाशक्ति ही एकमात्र संबल थी। इस फिल्म से जुड़ने के लिए दुनिया का हर काबिल कैमरामैन लालायित होगा, टेक्नोलॉजी ने सिनेमेटोग्राफी को भी आसान कर दिया है।
पच्चीस वर्ष पूर्व कैमरे और लाइट्स का भार उस ऊंचाई तक ले जाना असंभव था। अब सब कुछ आसान है। हिमालय अभियान साहस के साथ अध्यात्म से भी जुड़ा है। उसका सौंदर्य और उसमें अंतर्निहित खतरे आत्मा को पाप मुक्त कर सकते हैं। उसका एकांत कितना रहस्यमय होगा। दरअसल शेखर कपूर से उम्मीद है कि वे इस फिल्म को मात्र साहस कथा के रूप में नहीं प्रस्तुत करते हुए कवि हृदय से प्रस्तुत करें।
संवेदनशील मनुष्य के चिंतन में पहाड़ों और नदियों का गहरा प्रभाव होता है। नदी समय और प्रेम की तरह प्रवाहित है, तो पहाड़ मनुष्य के इरादों की तरह खड़े हैं। याद आती है श्रवण गर्ग की ‘पिता तुम एक पहाड़’ कविता - ‘वह जो पहाड़, तुमने खड़ा किया था, पत्थर के टुकड़ों को अपनी, लगातार जख्मी होती पीठ पर ढो-ढोकर, आज भी वैसा ही खड़ा है, कहीं भी कुछ नहीं बदला, सब कुछ वैसा ही है, जैसा तुम छोड़ गए थे सालों पहले।’ यह एक लंबी कविता है, जिसका आनंद इसे पूरा पढ़ने में है।
Get Certified with Diploma Now
2 हफ़्ते पहले
2 टिप्पणियां:
accha collection hai........keep continue
umeed hai shekhar tak ye baatjaroor pahuchegi......
एक टिप्पणी भेजें