मनालीhttp://www.blogger.com/img/blank.gif
पहाड़ झांकता है नदी में
और उसे सिर के बल खड़ा कर देती है नदी
लहरों की लय पर
हिलाती-डुलाती, नचाती-कंपकंपाती है उसे
पानी में कांपते अपने अक्स को देखकर भी
कितना शांत निश्चल है पहाड़
हम आंकते हैं पहाड़ की दृढ़ता
और पहाड़ झांकता है अपने मन में -
अरे मुझ अचल में इतनी हलचल
सोचता है और मन ही मन बुदबुदाता है-
किसी नदी के मन में झांकने की हिम्मत न करे कोई पहाड़
-अरुण आदित्य
यह कविता मनाली शीर्षक कविता शृंखला की छह कविताओं में से एक है। वागर्थ में प्रकाशित।
2 टिप्पणियां:
पहाड़ों में जन्म लेकर आप राजस्थान आ पहुंचे है यही हमारे देश की विविधता है!अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर!!!मेरी शुभकामनायें!!!
arun ji nice poem.
keep it up
poonm rawat
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