पुष्कर में होटल सरोवर का यह एकमात्र कमरा है, जहाँ से प्रसिद्ध पुष्कर झील का पूरा-पूरा नज़ारा होता है। लेकिन यदि इस समय इस होटल की कबूतरों भरी बालकनी से आप झील का नज़ारा देखेंगे तो सिहर उठेंगे। क्या यही वह प्रसिद्ध झील है? इसे क्या हो गया है? बड़ा ही भयानक नज़ारा है। एक काले जादू की तरह समूचा पुष्कर तालाब ही गायब हो गया है। एक गाय झील के बीचो बीच खड़ी होकर घास चर रही है, यह देखकर दिल टूट जाता है।
ऐसा माना जाता है कि नागा कुण्ड के पानी से निःस्संतान दम्पतियों को आशा बँधती है, अब पूरी तरह सूख चुका है।
यही हाल रूप कुण्ड का भी है, जो रूप कुण्ड सुन्दरता और शक्ति प्रदान करने की ताकत रखता था, आज अपनी चमक खो चुका है। चारों ओर नज़र दौड़ाईये, चाहे वह कपिल व्यापी हो अथवा अन्य 49 घाटों के किनारे, सब दूर एक ही नज़ारा है, सूखा हुआ पाट, पानी गायब। जिन घाटों पर श्रद्धालु पवित्र डुबकियाँ लगाते थे अब वह वीरान पड़े हैं। हालांकि अभी भी तीन घाट ऐसे हैं जहाँ डुबकी लगाई जा सकती है, लेकिन वह पानी भी पास के बोरवेल का है और पानी का स्तर तथा क्षेत्र एक बड़े कमरे जितना ही है जो कि कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर आने वाले पाँच लाख श्रद्धालुओं का बोझ नहीं सह सकेगा।जब से सर्वशक्तिमान ब्रह्मा जी ने इस पवित्र सरोवर का निर्माण किया है, तब से लेकर आज तक यह सिर्फ़ एक बार ही सूखा है, वह भी 1970 के भीषण सूखे के दौरान। तो फ़िर अब क्या हुआ? बहरहाल, सबसे पहले तो इस सरोवर के कायाकल्प की सरकारी योजना बुरी तरह भटककर विफ़ल हो गई, और रही-सही कसर इन्द्र देवता ने वर्षा नहीं करके पूरी कर दी। अब इस बात की पूरी सम्भावना है कि 25 अक्टूबर से 2 नवम्बर के दौरान लगने वाले प्रसिद्ध पुष्कर मेले के लिये आने वाले लाखों श्रद्धालु और विदेशी पर्यटकों को यह सरोवर सूखा ही मिले।जब हम सनसेट कैफ़े में बैठे थे, तब अचानक मूसलाधार बारिश की शुरुआत हुई। इस बारिश की शुरुआत ने ही समूचे शहर में मानो जान फ़ूंक दी, एक व्यक्ति सरोवर के किनारे-किनारे दौड़ता हुआ चिल्लाया "अभी भी आशा बाकी है, शायद जल्दी ही यह सरोवर भर जायेगा…"। लेकिन उत्साह अभी ठीक से शुरु भी नहीं हुआ था कि बारिश थम गई, और लोग फ़िर उदास हो गये। अजमेर से कुछ ही दूरी पर घाटी में पुष्कर का पवित्र सरोवर स्थित है और यह विशाल झील शुद्ध जल से भरी हुई होती है, यह पानी अमूमन आसपास की पहाड़ियों से एकत्रित होने वाला वर्षाजल ही है।
हिन्दू धर्मालु इसे "तीर्थराज" कहते हैं, अर्थात सभी तीर्थों में सबसे पवित्र, इस सम्बन्ध में कई लेख और पुस्तकें भी यहाँ मिलती हैं। कहा जाता है कि अप्सरा मेनका ने इस पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई थी और ॠषि विश्वामित्र ने भी यहाँ तपस्या की थी, लेकिन सबसे बड़ी मान्यता यह है कि भगवान ब्रह्मा ने खुद पुष्कर का निर्माण किया है।
पुष्कर में अभी तक सिर्फ़ कुल चार दिन ही अच्छी बारिश हुई है, लेकिन सरोवर में अभी तक जरा भी पानी नहीं पहुँचा है। क्षेत्रीय रहवासी मनोज पंडित कहते हैं कि सरोवर तक पानी पहुँचने के रास्ते में एक नहर का निर्माण कार्य चल रहा है, यदि वह रास्ता बन्द न होता तो शायद सरोवर में थोड़ा सा पानी पहुँच सकता था, लेकिन मुझे लगता है कि कार्तिक पूर्णिमा तक सरोवर में पानी भरने वाला नहीं है… अब सब कुछ ब्रह्माजी पर ही है…"। लेकिन मानव-निर्मित आपदा पर ब्रह्माजी भी क्या करेंगे?गत एक वर्ष से राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना के अन्तर्गत इस सरोवर के कायाकल्प और तलहटी में जमी गाद निकालने हेतु काम चल रहा है, जिसके लिये ठेकेदारों ने पूरी झील को खाली किया है, लेकिन शायद इसे पुनः भरने का काम परमात्मा पर छोड़ दिया है। हालांकि झील का लगभग 85% हिस्सा साफ़ करके गाद निकाली जा चुकी है, लेकिन झीलों को पानी सप्लाई करने वाली नहरों का काम अभी एक तिहाई भी खत्म नहीं हो सका है।
यदि सब कुछ ठीक रहा तो शायद यह समूचा काम अगले वर्ष नवम्बर तक खत्म होगा। नहर निर्माण के इंचार्ज ओपी हिंगर कहते हैं, "सरोवर के भरने का सिर्फ़ एक ही तरीका है, भारी वर्षा, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते…"। सरकार के प्रोजेक्ट इंजीनियर आरके बंसल भी स्थिति से परेशान हैं, लेकिन सारा दोष वे कम वर्षा पर ही मढ़ते हैं। वे कहते हैं कि यह सामूहिक जिम्मेदारी है और इसमें किसी एक व्यक्ति को दोष देना ठीक नहीं है। इस सारी प्रक्रिया से मनोज पंडित बुरी तरह झल्लाते हैं और उस डेनिश इंजीनियर को याद करते हैं, जिसने यह सुझाव दिया था कि सरोवर को तीन भागों में बाँटा जाये और एक के बाद एक उसे खाली करके गाद निकाली जाये ताकि एकदम झील खाली न हो, लेकिन उसकी एक न सुनी गई।मनोज पंडित की शिकायत सही मालूम होती है, जब हम देखते हैं कि सरोवर की फ़ीडर नहर एकदम रेगिस्तान जैसी सूखी पड़ी है, क्या नहर का काम पहले नहीं किया जा सकता था? पुष्कर नगरपालिका के अध्यक्ष गोपाललाल शर्मा ठेकेदारों की कार्यपद्धति और काम की गति से खासे नाराज़ हैं, वे कहते हैं "दिल्ली में बैठे इंजीनियरों ने कम्प्यूटर पर बैठकर झील की सफ़ाई का कार्यक्रम बना लिया है, आप देखिये किस बुरी तरह से उन्होंने काम बिगाड़कर रखा है। सरोवर के गहरीकरण और गाद सफ़ाई के नाम पर ऊबड़खाबड़ खुदाई की गई है और उसे समतल भी नहीं किया गया है। घाटों के आसपास गहरी खुदाई कर दी गई है, जो कि डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं के लिये खतरे का सबब बन सकती है और इससे पानी का स्तर भी एक सा नहीं रहेगा, कुछ घाट ऊँचे-नीचे हो जायेंगे। लेकिन यह सोच तो काफ़ी आगे की है, फ़िलहाल जबकि झील भरने के हल्के संकेत ही हैं, बदतर बात यह है कि तलछटी में भारी कीचड़ की वजह से वर्षाजल के लिये एक छलनी का काम करने वाली मिट्टी भी नष्ट हो रही है। सरोवर का जलचर जीवन पहले ही गणेश मूर्तियों के विसर्जन की वजह से समाप्त हो चला था। इन मूर्तियों पर लगे हुए जहरीले पेंट की वजह से सरोवर में मछलियों के जीवित बचने के आसार कम हो गये थे, हालांकि विसर्जन की इस परम्परा को बन्द कर दिया गया है। इस पवित्र पुष्कर सरोवर की वजह से यहाँ पर्यटन एक मुख्य आय का स्रोत है। टूरिस्ट एजेण्ट शर्मा कहते हैं कि पर्यटन उद्योग से पुष्कर शहर करोड़ों का व्यवसाय करता है, लेकिन पानी की कमी की वजह से लगता है इस वर्ष भारी नुकसान होगा। जापानी हरी चाय बेचने वाले सलीम कहते हैं यह सबसे खराब टूरिस्ट सीजन साबित होगा, मैंने अपने बचपन में सिर्फ़ एक बार 1973 में इस झील को सूखा देखा था।
स्थानीय व्यक्ति कहते हैं कि यदि आसपास के पहाड़ों पर लगातार चार घण्टे भी तेज बारिश हो जाये तो भी यह सरोवर भर जाये, लेकिन ऐसा होने की उम्मीद अब कम ही है। पुष्कर नगर में घूमते वक्त सतत यह महसूस होता है कि लगभग 500 मन्दिरों वाले इस शहर में सारे नगरवासी एक स्वर में यह प्रार्थना कर रहे हैं कि हल्की बारिश को तेज बाढ़ में बदल दें, ताकि सरोवर भर सके। शायद भगवान उनकी प्रार्थना सुन लें…
(मूल स्रोत: open)(लेखक का ईमेलः kabeer@openmedianetwork.in)(हिन्दी अनुवादः इण्डिया वाटर पोर्टल हिन्दी)
6 टिप्पणियां:
आमीन. ईश्वर नगरवासियों की सुन ले और तालाब भर जाये. पुष्कर तालाब का सूखना नगरवासियों के साथ-साथ पर्यटकों के लिये भी अफ़सोसनाक है.
दुखद खबर
बहुत अच्छा लिखते है आप.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
बहुत उम्दा आलेख
स्थिति अफ़सोस जनक............रब कृपा करे.........
आपका स्वागत है !
Sochne par majboor karti ye hai news is par sarkaar ko kuch karna chahiye, magar dekha jaaye to ye global warming ka asar jada lagta hai.aapke naye chithe ke intjaar me
Deepak "bedil"
http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
kamal ho gya.narayan narayan
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