सोमवार, 28 सितंबर 2009

बाघ के इंतजार में तीन रातें

मिस्टर अरोरा मुझे अपनी सूमो में बिठाकर फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में ले गए। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं दो दिन में वापस लौट आऊंगा और वहां मुझे जंगल में छोड़ दिया। रेस्ट हाउस की देखभाल करने वाला रसोइया और चौकीदार, दोनों ही नजर आता था। उसने मेरे लिए एक कप कड़कदार और मीठी चाय बनाई।

रस्किन बॉन्ड

‘सर, आप जंगल देखने के लिए आए हैं?’ ‘हां,’ मैंने बंगले के गेट के बाहर चारों ओर का नजारा देखते हुए जवाब दिया, जहां धूल-मिट्टी में कुछ पालतू मुर्गियां इधर-उधर टहल रही थीं। ‘यह सबसे अच्छी जगह है सर,’ चौकीदार ने कहा, ‘देखिए, नदी यहां से ठीक नीचे ही है।’ बंगले से मात्र पचास मीटर की दूरी पर पारदर्शी पहाड़ी जल की एक धारा साल और शीशम के घने छायादार जंगल के रास्तों से बह रही थी। ‘जानवर रात में आते हैं,’ चौकीदार बोला। ‘चीतल, सांभर, जंगली सूअर और कभी-कभार हाथी भी। आप एक कप चाय के साथ यहां बरामदे में बैठ सकते हैं और जानवरों को देख सकते हैं। आज रात आसमान में तीन चौथाई चांद है। आज तो सब साफ-साफ नजर आएगा। लेकिन आप बिलकुल शांत रहिएगा।’

‘मुझे बाघ दिखाई देगा?’ मैंने पूछा। ‘मैं बाघ को देखना चाहता हूं।’‘सर, हो सकता है बाघ भी आए,’ बड़ी सहानुभूतिपूर्ण मुस्कराहट के साथ चौकीदार ने कहा। ‘इस पूरे जंगल में सिर्फ एक ही बाघ बचा रह गया है।’ उसने मेरे लिए सादा सा दोपहर का खाना बनाया- दाल, चावल, आलू-गोभी की करी वाली सब्जी और साथ में स्वादिष्ट आम का अचार। प्राय: जंगल में अकेले रहने वाले चौकीदार बहुत शानदार रसोइए भी बन जाते हैं। मैंने रेस्ट हाउस के बरामदे में बैठकर दोपहर का खाना खाया। सामने खुली जगह में एक मोर अपने पंख फैलाकर फड़फड़ा रहा था। लेकिन मैं मोर के पंख देखकर बहुत संतुष्ट नहीं था। मैंने असंख्य मोर देख रखे थे। मुर्गियां तो जहां देखो, वहीं पर होती हैं। ‘क्या तुम्हारी मुर्गियों को जंगली जानवरों से खतरा नहीं होता?’ मैंने पूछा। ‘अंधेरा होने के बाद हमें उन्हें ताले में बंद करना पड़ता है, वरना जंगली बिल्ली उन्हें उठा ले जाएगी।’ जब अंधेरा घिर आया तो मैं बरामदे में केन की एक पुरानी कुर्सी पर अपने लिए आरामदायक जगह बनाते हुए जमकर बैठ गया। चौकीदार शेर सिंह (उसका यह नाम बिलकुल सही था) एक थाली में मेरे लिए खाना ले आया। उसे कैसे पता कि कोफ्ता मेरी सबसे पसंदीदा सब्जी है? रोटियां एक-एक करके बारी-बारी से आ रही थीं। उसका दस साल का बेटा रसोई से एक-एक करके गर्मागर्म रोटियां लेकर आ रहा था। वह उन दिनों स्कूल की छुट्टियों के समय पिता की मदद कर रहा था।

खाने के बाद दूध और शक्कर वाली एक कप चाय के साथ मैंने अपना रात्रि जागरण शुरू किया। फैली हुई रात में शेर सिंह, उसके बेटे और मुर्गियों को स्थिर होने में करीब एक घंटे का समय लगा। घर में बिजली नहीं थी, लेकिन उस लड़के के पास बैटरी से चलने वाला एक रेडियो था, जिस पर वह क्रिकेट कमेंट्री सुन रहा था। कोई भी आत्मसम्मान वाला बाघ क्रिकेट की कमेंट्री से आकर्षित नहीं हो सकता था। आखिरकार उसने रेडियो बंद कर दिया और सो गया। पहाड़ी पर चांद उग आया था और चांद की रोशनी में धारा बिलकुल साफ नजर आ रही थी। और तभी एक तेज आवाज से रात की फिजा गूंज उठी। यह बाघ या तेंदुए की आवाज नहीं थी, लेकिन आवाज धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी- डुक, डुक, डुक। धारा के कीचड़ भरे किनारों से आवाज उठ रही थी। ऐसा लग रहा था मानो पूरे जंगल के मेंढक रात के लिए वहां इकट्ठे हो गए थे। जरूर उनके यहां कोई चुनावी रैली हो रही थी, क्योंकि हर किसी के पास कहने के लिए कुछ न कुछ था। लगभग एक घंटे तक उनका भाषण चलता रहा और फिर सभा निरस्त हो गई। जंगल में फिर से शांति लौट आई।

उस रात कोई जानवर पानी पीने नहीं आया। अगली शाम शेर सिंह ने खुद भी मेरे साथ जागने का प्रस्ताव रखा। उसने बरामदे में एक तेल का स्टोव रखा और एक बड़े से बर्तन में चाय भरकर उसके ऊपर रख दिया। ‘जब भी नींद आएगी, मैं आपको एक कप चाय दूंगा।’ क्या ये तेंदुए की आवाज है या कोई लकड़ियां चीर रहा है? आवाज बड़ी मिलती-जुलती सी थी। एक सियार लुक-छिपकर वहां आया। इसी तरह दो भेड़िए भी आए। इसमें कोई शक नहीं कि वे सब शेर सिंह की मुर्गियों की तलाश में वहां आए थे। मेंढक फिर से शुरू हो गए। शादीशुदा मेंढक जरूर इस बार अपनी बीवियों को भी साथ लेकर आए थे, क्योंकि भाषणों के अलावा इस बार ढेर सारी टर्र-टर्र, शिकायतें और चटर-पटर भी हो रही थी, जैसे कोई किटी पार्टी चल रही हो।

सुबह तक तकरीबन मैं पंद्रह कप चाय पी चुका था, लेकिन फिर भी बाघ नहीं नजर आया। मेरे दादा, जो भारत में चाय बागान लगाने वालों में अग्रणी थे, उनके प्रति अपने सम्मान के कारण मैंने कोई शिकायत नहीं की। और न ही इससे अच्छे नाश्ते की मांग कर सका- ताजे अंडे, टोस्ट पर लगा हुआ घर का बना हुआ मक्खन और बेशक ढेर सारी चाय। तीसरी रात भी लगभग उसी तरह गुजर गई, सिवाय इसके कि जंगली सूअरों का एक समूह आया और उन्होंने शेर सिंह के सब्जियों के बगीचे को ही खोद डाला। दोपहर तक मिस्टर अरोरा मुझे लेने के लिए अपनी सूमो में आए। ‘कुछ देखा आपने?’ उन्होंने पूछा। ‘कुछ खास नहीं, लेकिन मैंने बहुत बढ़िया नाश्ता किया।’ ‘कोई बात नहीं। शायद अगली बार किस्मत अच्छी हो।’ मैंने शेर सिंह और उसके बेटे को गुडबाय कहा, उनसे फिर आने का वादा किया और सूमो में सवार हो गया। हम जंगल की सड़क पर मुश्किल से १क्क् मीटर ही गए होंगे कि मिस्टर अरोरा ने अचानक एक झटके के साथ अपनी गाड़ी रोक दी। वहां बिलकुल सड़क के बीचोंबीच सिर्फ कुछ मीटर की दूरी पर हमारे सामने एक विशालकाय बाघ खड़ा था।

बाघ हमें देखकर न तो दहाड़ा और न ही गुर्राया। उसने बस हमें एक नजर बेरुखी से देखा, मुड़ा और बिलकुल भव्य राजसी अंदाज में सड़क पार करके जंगल में चला गया। ‘क्या किस्मत है!’ मिस्टर अरोरा खुशी से चीखे। ‘अब आप शिकायत नहीं कर सकते मिस्टर बॉन्ड। आपने बाघ देख लिया और वह भी दिन-दहाड़े उजाले में। लगातार तीन रातों से जागने के कारण अब आपको बहुत थकान लग रही होगी। एक कप शानदार चाय हो जाए। क्या ख्याल है?’ ‘मेरे ख्याल से मुझे ज्यादा कड़क चीज की जरूरत है’ मैंने कहा। जब हम मुख्य सड़क पर आ गए, मैंने एक साइनबोर्ड की ओर इशारा किया, जिस पर लिखा हुआ था : ‘अंग्रेजी वाइन शॉप।’ यहीं गाड़ी रोक लीजिए और मि. अरोरा ने बड़ी उदारता से मेरी बात मान ली।

-लेखक पद्मश्री विजेता ब्रिटिश मूल के भारतीय साहित्यकार हैं।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा, कमेंट बक्सा वापस देख कर.