सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

भावनाओं का बांध


दो
टिहरी किसी चुप्पी की गिरफ्त में है। विकास का जहर धीरे-धीरे घुल रहा है। सबकुछ गुपचुप हो रहा है नींद में चलने की तरह। जो शहर रात को भी नहीं सोता था, आज चिरनिद्रा में है। नहीं है यहां कोई जल्दी या हड़बड़ी। जैसे किसी को कहीं जाना ही नहीं, लौटना ही नहीं। दर्द और तनाव की गांठें-गांठें धीरे-धीरे खुल रही हैं।

-एल पी पंत
टिहरी
27. जून 1999

टिहरी बांध से जुड़े संस्मरण का पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें-
एक था टिहरी

2 टिप्‍पणियां:

Ashok Kumar pandey ने कहा…

सारी पोस्ट पढी
आप स्तुत्य काम कर रहे हैं
इसे एग्रीगेटर से संबद्ध करें।

padmja sharma ने कहा…

टिहरी बाँध का दर्द झलक रहा है आलेख में .भाव और भाषा दोनों में .