दोटिहरी किसी चुप्पी की गिरफ्त में है। विकास का जहर धीरे-धीरे घुल रहा है। सबकुछ गुपचुप हो रहा है नींद में चलने की तरह। जो शहर रात को भी नहीं सोता था, आज चिरनिद्रा में है। नहीं है यहां कोई जल्दी या हड़बड़ी। जैसे किसी को कहीं जाना ही नहीं, लौटना ही नहीं। दर्द और तनाव की गांठें-गांठें धीरे-धीरे खुल रही हैं।
-एल पी पंत
टिहरी
27. जून 1999
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एक था टिहरी
2 टिप्पणियां:
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टिहरी बाँध का दर्द झलक रहा है आलेख में .भाव और भाषा दोनों में .
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