शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

एक था टिहरी


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टिहरी चुप है पर एकदम मौन नहीं। झींगरों की झनझनाती आवाजें, घास और पत्तों की सरसराहट, भूली बिसरी समृति का अकेलापन और एक निश्चित अंतराल के बाद हिलोरे मारती भागीरथी की आवाज यहां अब भी मौजूद है। टिहरी चुप है पर बिलकुल मौन नहीं। मन की तरह।

टिहरी , 22.feb.1999

4 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

मैने हरसूद एक शहर की मौत यह किताब पढ़ी है मै समझ सकता हूँ कि आपने जब अपनी आँखों से इसे डूब मे जते देखा होगा आप पर क्या गुजरी होगी । क्या करे व्यवस्था के आगे हमारी कहाँ चलती है?

अरविन्द शर्मा ने कहा…

very nice blog, but my reqst that u wrote artical on ur blog.

Arvind Sharma
Sikar
apkikhabar.blogspot.com

L P Pant ने कहा…

thanx

RAJENDRA ने कहा…

bhaiji me pahad ka admi nahin parantu pahad se behad pyar karta hun. Mujhe keval tv par dekh kar bahut bura laga tha tihri ko pani me samate