बुधवार, 21 अप्रैल 2010

पहाड़ झांकता है नदी में


मनालीhttp://www.blogger.com/img/blank.gif

पहाड़ झांकता है नदी में
और उसे सिर के बल खड़ा कर देती है नदी
लहरों की लय पर
हिलाती-डुलाती, नचाती-कंपकंपाती है उसे

पानी में कांपते अपने अक्स को देखकर भी
कितना शांत निश्चल है पहाड़
हम आंकते हैं पहाड़ की दृढ़ता
और पहाड़ झांकता है अपने मन में -
अरे मुझ अचल में इतनी हलचल
सोचता है और मन ही मन बुदबुदाता है-
किसी नदी के मन में झांकने की हिम्मत न करे कोई पहाड़

-अरुण आदित्य
यह कविता मनाली शीर्षक कविता शृंखला की छह कविताओं में से एक है। वागर्थ में प्रकाशित।

2 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

पहाड़ों में जन्म लेकर आप राजस्थान आ पहुंचे है यही हमारे देश की विविधता है!अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर!!!मेरी शुभकामनायें!!!

poonam rawat ने कहा…

arun ji nice poem.
keep it up

poonm rawat