मंगलवार, 5 जनवरी 2010

तबले में गूंजे शंख-डमरू, गरजी तोप

उस्ताद जाकिर हुसैन सॊमवार कॊ जयपुर में थे। गुलाबी शहर में उनके हॊने का मतलब है कि तबले की थाप पर यकीनन कुछ नया हॊने वाला है। शहर के बिडला आडिटॊरियम की शाम उन्ही के नाम रही। हाल के बाहर हिमालय से उठने वाली सर्द हवाएं सितम ढाह रहीं थीं और अंदर हाल के उस्ताद की अंगुलियॊं की कशिश गजब की गरमाहट पैदा कर रही थी। हमारे स्टेट एडिटर नवनीत गुर्जर भी इस शाम में शरीक हुए। सिर्फ शामिल ही नहीं हुए लौटकर जब आए तॊ तबले की थाप कॊ शब्दॊं की ताल देने से खुद कॊ नहीं रॊक पाए। उस्ताद की ताल और थाप उन्हीं की जुबानी। नवनीत गुर्जर

ब्रह्मांड की रचना का ध्वनि रूप कैसा रहा होगा-जैसा उस्ताद अल्लारखा बताते थे, वैसा ही जाकिर ने भी जीवंत किया। नीचे धरती पर उतरे तो पखावज और डमरू के साथ शंख गूंजने लगे। तोपें भी गरजीं। तबले पर उस्ताद जाकिर हुसैन की उंगलियां भर थीं लेकिन लग ऐसा रहा था जैसे बनारस के किसी मंदिर में आरती हो रही हो और गंगा का प्रवाह खाली ताली दे रहा हो। केवल मंदिर ही क्यों उस्ताद का तबला बनारस की गलियों में भी घूमा।

वाहनों की भीड़ के साथ वो मदमाता हाथी और इन सबके बीच से सहमा हुआ पैदल आम आदमी कैसे गुजरा, तबले ने यह कहानी बड़ी भावुकता से सुनाई। इसके बाद तो हिरण परन में पहले हिरण सहमा, फिर कूदा और कूदते-कूदते कैसे ओझल हो गया, या तो बिड़ला ऑडिटोरियम में बज रही तालियों ने जाना या उस्ताद की उंगलियों ने।

ट्रेन की छुक-छुक हो या कबूतरों की

गुटर-गू, सब कुछ रेले में ऐसा बहा कि पता नहीं चला वहां उपस्थित लोग ट्रेन में सवार हैं या उस्ताद की उंगलियों पर। गायन में जैसे भैरवी होती है वैसा ही तबला में रेला। सो, उस्ताद इति कर चुके थे लेकिन फिर भी बजाने का आग्रह हुआ तो वे रुके नहीं और रास्ता निकाल लिया। सारंगी पर राजस्थानी लोकगीत बजा और उस्ताद ने उसमें भी रेले दिखाए, बजाए और सुनाए। श्रुति मंडल की ओर से आयोजित राजमल सुराणा संगीत समारोह का यह पहला दिन था।

3 टिप्‍पणियां:

Vivek Shukla ने कहा…

maine ise teen baar padha!!! laga main bhi to wahin kahin tha...ustad ko kai baar LIVE suna hai...har anubhav khud ko thaapon ke beech kahin kho dene ka hai...wo maadakta, jiska nasha umra bhar naa utre.

Neelambar Jha ने कहा…

u seem to be a poet n took me to vishwanath mandir thnx 4 it!!!!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

उस्ताद लाजवाब हैं।
यही रिपोर्ट आज कोटा भास्कर में पढ़ चुका हूँ। तब से रिपोर्टर को तलाश कर रहा था जो अब पूरी हुई। शानदार रिपोर्ट।