मंगलवार, 1 मार्च 2011

आवारा परिंदों की आरामगाह: रस्किन बॉन्ड


झाड़ियों के बारे में जो चीज मुझे सबसे अच्छी लगती है, वह यह है कि वे अमूमन मेरे कद के बराबर ही होती हैं। अधिकांश पेड़ बहुत ऊंचाई तक जाते हैं। कुछ ही सालों में हमें उन्हें सिर उठाकर देखना पड़ता है। हमें लगता है कि उनके और हमारे कद में बहुत अंतर है। होना भी चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ झाड़ी, चाहे उसकी उम्र तीस या चालीस साल ही क्यों न हो, हमेशा हमारी पहुंच के भीतर और हमारे कद के बराबर बनी रहती है। झाड़ियां फैल सकती हैं या बहुत घनी भी हो सकती हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि उनकी ऊंचाई हमसे भी अधिक हो जाए। इसका मतलब यह है कि हम झाड़ियों के साथ अधिक आत्मीय हो सकते हैं। हम उसकी पत्तियों, फूलों, बीजों और फलों से अधिक अच्छी तरह से परिचित हो सकते हैं। साथ ही झाड़ियों में बसने वाले कीड़ों, पक्षियों और अन्य छोटे जीवों से हमारा ज्यादा करीबी रिश्ता हो सकता है।

यह तो हम सभी जानते हैं कि मिट्टी के कटाव पर रोक लगाने के लिए झाड़ियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। इस मामले में उनकी महत्ता पेड़ों जितनी ही है। हर बारिश में मुझे जगह-जगह से भूस्खलन की खबरें मिलती हैं, लेकिन मेरे घर के ठीक ऊपर जो पहाड़ी भूमि है, उसे करौंदे, जंगली मोगरे और रसभरी की झाड़ियों ने कसकर बांध रखा है। मैंने इन्हीं के बीच एक बेंच लगा रखी है। यहां बैठकर मैं अपने घर की छत के साथ ही इधर-उधर के दृश्यों पर भी नजर रख सकता हूं। यह मेरी पसंदीदा जगह है। जब तक मैं यहां होता हूं, तब तक मुझे कोई खोज नहीं सकता। तब तक नहीं, जब तक मैं खुद ही झाड़ियों के भीतर से आवाज लगाकर उसे यह न बताऊं कि मैं यहां छिपा बैठा हूं। मैं पक्षियों के लिए अनाज के दाने बिखेर देता हूं और वे मेरे इर्द-गिर्द फुदकते रहते हैं। उनमें से एक पक्षी, जो सबसे ज्यादा दबंग होता है, मेरे जूते पर आ बैठता है और उस पर अपनी चोंच रगड़कर उसे चमकाने की कोशिश करने लगता है। यहां सालभर चिड़ियां नजर आती हैं। कुछ गाने वाली बुलबुल भी हैं, जो घरों और पहाड़ों की तराई के बीच की जगह में रहती हैं। इन जगहों की झाड़ियां जरा नम होती हैं और बुलबुलों को यह अच्छा लगता है।

गर्मियों के आगमन के साथ ही फल कुतरने वाले पक्षी जाने कहां से चले आते हैं, क्योंकि इस मौसम में बेरियां पक चुकी होती हैं। इन्हीं में शामिल है हरे कबूतरों का एक जोड़ा। मैंने इस प्रजाति के कबूतर इससे पहले कभी नहीं देखे थे। वे एक कंटीली झाड़ी के ऊपर मंडराते रहते हैं और उसके फलों को बड़ी नफासत के साथ कुतर डालते हैं। रसभरी की झाड़ियों पर छोटी फिंच चिड़ियाएं और पीले पेट वाली बुलबुलें धावा बोल देती हैं। हरे तोतों का एक झुंड फलदार पेड़ों पर झपट्टा मारता है। वे यहां कुछ देर ही रुकते हैं। मेरी पदचाप सुनते ही तोतों का झुंड हवा में हरे रंग की एक लहर बनाते हुए उड़ जाता है। इसके बाद वे निचले पहाड़ी रास्तों पर मौजूद बालूचे के दरख्तों पर दावत मनाने में मशगूल हो जाते हैं।

हिमालय की तराइयों में किंगेरा नाम की एक झाड़ी पाई जाती है, जो करौंदे की ही तरह होती है। यह पक्षियों के साथ ही छोटे बच्चों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। स्कूल से छूटकर घर की ओर लौटते बच्चे इनके इर्द-गिर्द एकत्र हो जाते हैं और छोटे-छोटे खट्टे-मीठे बेरों का मजा लेते हैं। वे इतने ज्यादा बेर खा लेते हैं कि उनके होंठ जामुनी रंग के हो जाते हैं। इसके बाद वे इसी तरह झूमते-गाते घर की ओर बढ़ जाते हैं। उनके जाते ही पक्षी यहां लौट आते हैं।

झाड़ियों के इस संसार में छिपकलियों-सी दिखाई देने वाली छोटी बामनियां भी नजर आ जाती हैं। वे कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचातीं। उनका ठिकाना आमतौर पर चट्टानों की दरारों या पेड़ों की जड़ों के इर्द-गिर्द होता है। वे यदा-कदा धूप सेंकने या पत्तियों की ओस से अपनी प्यास बुझाने के लिए बाहर चली आती हैं। मुझे एक बड़ी शिकारी बिल्ली से इनकी रक्षा करनी पड़ती है। इन धारीदार बिल्लियों को लगता है जैसे पहाड़ पर बसने वाले सभी छोटे-मोटे जीव-जंतु उनका भोजन हैं। अपनी बेंच पर बैठे-बैठे मैं उसे अपनी छत पर धीरे-धीरे चलते देख लेता हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि इस बिल्ली की नजर हरे कबूतरों के जोड़े पर है। मुझे भी लगातार इस बिल्ली पर नजर बनाए रखनी होगी। जब तक यह बिल्ली है तब तक पक्षियों को झाड़ियों तक बुलाने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि यह तो उस बिल्ली के नाश्ते का इंतजाम करने की तरह होगा।

बहुत-सी झाड़ियों में सुंदर-सुंदर फूल भी लगते हैं। डॉग रोजेज की झाड़ियां, जंगली पीले मोगरे, बुडेलिया के फूल जो मधुमक्खियों को बहुत आकर्षित करते हैं और मेफ्लॉवर की फूलों भरी झाड़ियों का फैलाव, जिन पर पीले रंग की तितलियों का समूह किसी लिहाफ की तरह बिछा रहता है। सर्दियों में पीली पड़ जाने वाली घास अब हरी हो चली है। दूब का कालीन बिछा है। मैं अब अपनी बेंच छोड़कर घास पर भी लेट सकता हूं। घास को देखकर मुझे हमेशा वॉल्ट व्हिटमैन की यह कविता याद आती है : एक बच्चे ने पूछा/क्या होती है घास/उसके हाथों में थी जरा-सी घास/जमीन से उखड़ी हुई/मैं तुम्हें कैसे बता सकता हूं मेरे बच्चे? पहले जो घास थी/नहीं जानता मैं/क्या है वह अब।

मैं कोई बहुत जानकार व्यक्ति नहीं हूं, फिर भी इतना तो मैं कह ही सकता हूं कि घास बहुत अच्छी होती है, क्योंकि वह बहुत से झींगुरों, टिड्डों और अन्य छोटे-मोटे जंतुओं का आवास होती है। शिकारी बिल्ली भी इस बात पर मुझसे सहमत होगी। आखिर वह घास पर बसने वाले इन छोटे-मोटे जीवों को हजम कर ही तो इतनी मुटा गई है। बिल्ली ने समझ लिया है कि झाड़ियों के पक्षियों से तो घास के टिड्डे ही भले। मैं बिल्ली को डराकर भगा देता हूं। हरे कबूतर भी अब उड़ चले हैं। छोटे पक्षी अपनी जगह पर कायम हैं, लेकिन वे चौकन्ने हैं और बिल्ली उन्हें चकमा नहीं दे सकती। मैं अपनी बेंच पर जाकर बैठ जाता हूं और पक्षियों को निहारता रहता हूं। ये झाड़ियां पक्षियों के लिए एक प्रतीक्षालय की तरह हैं, लेकिन अगर वे चाहें तो यहां अपना बसेरा भी बना सकते हैं। उनकी मौजूदगी मेरी जिंदगी में मिठास घोल देती है।

लेखक पद्मश्री से सम्मानित ब्रिटिश मूल के साहित्यकार हैं।

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