बुधवार, 16 दिसंबर 2009

फूलों की अनूठी घाटी

जहां मिलती हैं फूलों की तीन सौ प्रजातियां
हिममण्डित शिखरों की गोद में बसी विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी से भला कौन अपरिचित है। बात सन् १९३१ की है, गढ़वाल स्थित कामेट शिखर (२५,४४७ फीट) पर आरोहण करने वाले दल में प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ थे जो सफल आरोहण के बाद धौली गंगा के निकट गमशाली गांव से रास्ता भटक जाने के बाद पश्चिम की ओर बढ़ते-बढ़ते १६७०० फीट ऊंचा दर्रा पार करते भ्यूंडार घाटी पहुंचे। वहां से कुछ आगे बढ़ने पर सहसा अकल्पनीय खुशी से उछल पड़े, क्योंकि वे एक स्वर्गिक खूबसूरत घाटी में पांव रख चुके थे जहां राशि-राशि प्राकृतिक फूलों का सैलाब लहलहा रहा था। वे भावविभॊर और मंत्रमुग्ध होकर फूलों से मिले सौंदर्य को देखकर ठगे से रह गए। और अपना तम्बू वहीं तान दिया।

सन् १९३७ में वे दुबारा इस घाटी में पहुंचे। गहन शोध कर उन्होंने लगभग ३०० किस्म की फूल की प्रजातियों को ढूंढ निकाला। वहां से लौटकर उन्होंने Valley of flowers पुस्तक लिखी जिससे फूलों की यह घाटी विश्व प्रसिद्ध हो गई। ८ ७.५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली यह घाटी नम्बर-दिसम्बर से अप्रैल-मई तक बर्फ से ढकी रहती है। जून में बर्फ पिघलने के साथ ही हरियाली शुरू हो जाती है। जुलाई से घाटी में फूलों से महकनी शुरू हो जाती है। अगस्त में घाटी में फूलों का यौवन सर्वाधिक दर्शनीय और आकर्षक हो जाता है। अक्टूबर में फूल धीरे-धीरे कुम्हला जाते हैं।

फूलों की घाटी में ब्रह्मकमल, एकोनिटस एट्राक्स, रोडोड्रेडोन (बुरांस), पौपी, रोजी, र्जीनिया, लिगुजेरिया, सेक्सीफेगा, ससूरिया ओवेलाटा, हेटरीफिल्लम, भूतकोशी, पेस्टोरिस, थाइमस लाइनियेरिस, एंजिलिका ग्लूका, जैसियाना कुरा, ओनेस्मा, इमोडी, रियम इमोडी, रियम यूरक्रोफिटटोनम, नाडरेल्टैकिस ग्रेंडिफोरम, पोलिगेनिटिम र्टिसिलेटम आदि समेत कई प्रजातियों के फूल पाए जाते हैं। यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से गोविन्द घाट जो कि समुद्र तल से १८२९ मीटर की ऊंचाई पर है बस की सुविधा है। गॊविंद घाट से फूलों की घाटी तक १७ किमी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। मजे की बात यह है कि फूलों की घाट के पास दो और बड़े तीर्थ ब्रदीनाथ धाम और हेमकुण्ड धाम हैं जहां हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सारगर्भित जानकारी...बहुत इच्छा है यहाँ जाने की पता नहीं कब पूरी होगी...
नीरज

Rajeysha ने कहा…

शहरि‍यों का ख्‍वाब हैं वो मंजर जि‍नको आपने यहां बयां कि‍या है।