गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

हिमालय में एटमी आफत

चीन के परमाणु संयत्रों पर नजर रखने के लिए नंदादेवी पर लगाया गया न्यूक्लियर डिवाइस अब तक लापता, बोस्टन कैमिकल डेटा कॉरपोरेशन की रिपोर्ट में परमाणु रेडिएशन की पुष्टि
लक्ष्मी प्रसाद पंत

कोपेनहेगन में धरती को बचाने के लिए जहां 192 देशों के प्रतिनिधि चिंतन-मनन में जुटे हैं वहीं हिमालय में 44 साल से गुम न्यूक्लियर डिवाइस को लेकर कहीं कोई चिंता नहीं है। हकीकत यह है कि चार पौंड प्लूटोनियम से भरी यह डिवाइस ग्लोबल वार्मिग से कई गुना खतरनाक है। बोस्टन कैमिकल डेटा कॉरपोरेशन की हालिया रिपोर्ट तो यहां तक कह रही है कि जिस नंदादेवी पर्वत पर यह न्यूकिलर डिवाइस गुम हुआ था उस क्षेत्र में रेडिएशन शुरू भी हो गया है।
इस लापता न्यूक्लियर डिवाइस का सच आखिर क्या है? इसी साल का जाब खोजने के लिए जब मैं नंदादेवी सेंचुरी के आखिरी गांव मलारी और लाता पहुंचा तो यह जानकर हैरान रह गया कि इन दोनों गांवॊं में 44 साल बाद भी न्यूक्लियर डिवाइस का खौफ जस का तस है। नंदादेवी बचाओ अभियान से जुड़े सक्रिय कार्यकर्ता सुनील कैंथोला तो यहां तक कहते हैं कि गुजरे 44 सालों से इस मसले पर चिंता जताई रही है लेकिन सरकारी स्तर पर अभी तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है। बकौल कैंथॊला पानी में परमाणु रेडिएशन को लेकर बोस्टन कैमिकल डेटा कॉरपोरेशन की रिपोर्ट ने हमारी शंकाओं को सच कर दिया है। काबिलेगौर है कि 1965 को नंदादेवी के जिस कैप चार से न्यूक्लियर डिवाइस गायब हुआ था उसके ठीक नीचे श्रृषि गंगा निकलती है जो गंगा का प्रमुख जल स्रोत है। असल खतरा अब यह कि अगर डिवाइस से रेडिएशन होता है, या जैसा कि बोस्टन कैमिकल डेटा कॉरपोरेशन की रिपोर्ट बताती है कि रेडिएशन हो रहा है तो हालात विस्फॊटक हैं। रिपोर्ट यह भी कह रही है कि जहां न्यूक्लियर डिवाइस गुम हुआ था उस पूरे क्षेत्र की फिर से गहन साइंटिफिक पड़ताल होनी चाहिए। चिंताजनक यह भी है कि इस रिपोर्ट के बाद भी भारत सरकार हरकत में नहीं आई है। अभी तक ऋषि गंगा और गंगा के पानी के सैंपल का टेस्ट न कराया जाना भी सवाल खड़े कर रहा है।

खतरनाक है रिसाव

1965 में चीन के परमाणु संयत्रों और हरकतों पर नजर रखने के लिए अमरीका और भारत ने मिलकर उत्तराखंड की
नंदादेवी पर्वत के कैंप चार पर न्यूक्लियर डिवाइस रखा था। लेकिन बर्फीला तूफान आने के कारण डिवाइस बर्फ में कहीं गुम हो गया और आज तक नहीं मिल पाया है। इसमें प्लूटोनियम 238 और प्लूटोनियम 239 का इस्तेमाल किया गया जिसका रिसाव बहुत खतरनाक है।

खोजने के लिए चले अभियान
16 मई 1966 को न्यूकिलर डिवाइस को ढूंढ़ने के लिए पहला अभियान चला। डिवाइस को खोजने के लिए 2009 तक क्लीन नंदादेवी के नाम से करीब 18 अभियान चलाए जा चुके हैं। भारत सरकार डिवाइस को ढूंढ़ने के लिए अमेरिका के छह हस्की हैलिकाप्टर तक की मदद भी ले चुकी है लेकिन कामयाबी अभी दूर है।

और अब खतरा

वैसे तो न्यूक्लियर डिवाइस से खतरा १९६५ से बना हुआ है लेकिन 2005-०६ में अमेरिकी पर्वतारॊही पेट टाकेडा नंदादेवी सेंचुरी से मिट्टी और पानी की रेत के कुछ सैंपल लेकर गए। उन्होंने इनकी जांच जब अमरीका की बोस्टन कैमिकल डाटा कॉरपोरेशन की थी तो इस सैंपल के परमाणु विकिरण से प्रदूषित होने का खुलासा हुआ। सैंपल की जांच में प्लूटोनियम 238 और प्लूटोनियम 239 के अंश मिले हैं। काबिलेगौर है कि अकेले प्लूटोनियम 238 की आधी उम्र ही 90 साल है और यह पूरी तरह खत्म होने में एक हजार साल लेगा।

3 टिप्‍पणियां:

hem pandey ने कहा…

इस खतरनाक तथ्य की अनदेखी महंगी पड़ सकती है.

सुशील ने कहा…

प्रिय मृगेंद्र और सभी पत्रकार बंधुओं,
ये तो कमल का ब्लॉग है ! लक्ष्मी जी का काम काबिल-ए-तारीफ़ है ! Thanks for keeping me updated.

एक मेरे कार्टूनिस्ट दोस्त हैं श्री नीरज गुप्ता. उनकी एन. जी. ओ. "मास फॉर अवेयरनेस " एक कैम्पेन चला रही है "वोट फॉर इंडिया". ये एक मतदाता जागरूकता अभियान है. जरा एक नज़र तो डालो !http://www.voteforindia.co.in
Wishes,
सुशील

Girish Mishra ने कहा…

Very interesting and informative, besides being well written.
Thanks for sending it to me.
Girish Mishra