सोमवार, 21 दिसंबर 2009

पत्थर में खिलता है कमल


वर्ष में ज्यादातर समय बर्फ से ढके हिमालय की छटा वर्षा ऋतु के दौरान निराली हो जाती है। जून तक के महीने में सूर्य की तीखी किरणें हिमालय पर जमी बर्फ को शायद ही विचलित कर पाती हो लेकिन मानसून आने के साथ ही प्रकृति अपना रंग दिखाने लगती है और चारों ओर होती है जड़ी-बूटियों, फूलों की बहार। इस मनमोहक हरियाली के बीच होती है प्रकृति रूपी चित्रकार की अनूठी रचना ‘ब्रह्मकमलज् जिसका जीवन सिर्फ तीन महीने का होता है।

अगस्त सितंबर में यहां चट्टानों पत्थरों पर आसानी से खिलनेवाला ब्रह्मकमल एक दुर्लभ, काफी बड़े आकार का और अत्यन्त सुगंध युक्त होता है। संपूर्ण उत्तराखंड में इसे सुख-सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है, इसलिए इसे एक अनमोल विरासत के तौर पर लोग अपने घरों में संभाल कर रखते हैं। यह फूल मुरझाने पर भी खुशबू को फैलाए रखता है। क्रीम रंग की पंखुड़ियों से लिपटे रहने से फूल का नाम कमल है लेकिन इसका कमल की जाति से कोई संबंध नहीं है।

इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि पांडों के अज्ञातास के दौरान गढ़वाल स्थित पाण्डुकेसर के निकट अलकनंदा और पुष्पाती के संगम पर जब द्रोपदी स्नान कर रही थी तो उनकी नजर एक ऐसे मनमोहक पुष्प पर पड़ी जो तेज धारा में बहता हुआ उनकी आंखों से ओझल हो गया। द्रोपदी ने भीम से उस पुष्प को ढूंढ लाने का आग्रह किया। भीम उसे ढूंढते-ढूंढते फूलों की घाटी तक जा पहुंचे। इन्हीं फूलों में सबसे आकर्षक और दिव्य पुष्प था-ब्रह्मकमल। भीम इन ब्रह्मकमलों को तोड़ लाए और द्रोपदी ने इसी से भगान की पूजा की।

2 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

सुन्दर जानकारी. चित्र और बोटानिक नाम भी होता तो सोने में सुहागा हो जाता.

ghughutibasuti ने कहा…

ब्रह्म कमल की जानकारी के लिए आभार। हिमालय की दुर्गति के बारे में पढ़कर बहुत दुख होता है।
घुघूती बासूती