दुर्गम यात्रा के शौकीनों के लिए गढवाल वास्तव में स्वर्ग है। ऊंचे हिमशिखरों की छांव में यहां ऐसे स्थल हैं जो पर्यटकों को प्रबल आकर्षण की डोर से बांध लेती हैं। इन्हीं में एक अद्वितीय सौन्दर्य स्थली है-सुप्रसिद्ध रूपकुण्ड झील जो आज भी पर्यटकों के लिए एक रहस्य बनी हुई है। रहस्य का कारण है झील के किनारे प्राचीन मानव अस्थियों का बिखरा होना। असाधारण नरकंकाल पाये जाने के कारण यह रहस्यमयी झील विश्वविख्यात हो गई है।
इस प्रसिद्धि के बावजूद रहस्य का पता नहीं चल पाया कि वे लोग कौन थे जो यहां ढेर हो गये? बहरहाल यह स्थल अब साहसी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र बना है। सन् १९५७ में लखनऊ विश्वविद्धालय से विख्यात नृंशशास्त्री डा. डी.एन.मजूमदार ने यहां आकर कुछ मानव हड्डियों के नमूने अमेरिकी मानव शरीर विशेषज्ञ डा. गिफन को भेजे जिन्होंने रेडियो कार्बन विधि से परीक्षण कर इन अस्थियों को ४००-६ ०० साल पुराना बताया।
यह स्थल चमोली जनपद में समुद्रतल से ४७७८ मीटर की ऊंचाई पर और नन्दाघुंटी शिखर की तलहटी पर स्थित है। झील से सटा ज्यूरांगली दर्रा (५३५५मीटर) है। रूपकुंड तक का मार्ग अत्यंत मोहक और प्राकृतिक छटाओं से भरा है। घने जंगल, मखमली घास के चरागाह, फूलों की बहार, झरनों नदी-नालों का शोर, बड़ी-बड़ी गुफाएं, गांव, खेत सर्वत्र एक सम्मोहन पसरा हुआ है। गहरी खामोशी में डूबी चट्टानों के बीहड़ जमघट में भी एक आनन्द छुपा है। रूपकुंड के लिए आखिरी बस स्टाप बगरीगाड़ है। यहां से ४१ किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। बगरीगाड़ में पोर्टर गाइड मिल जाते हैं, यहीं से इन्हें साथ ले चलना बेहतर रहता है। खाने-पीने, पहनने का पर्याप्त सामान लेकर ही ट्रैकिंग शुरू करनी चाहिए।
1 टिप्पणी:
aise hi aage badhte rahenge...
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