रविवार, 3 जनवरी 2010

देव वन: जंगल में रहते हैं देवता

उस मौन महकते जंगल का नाम ही ‘देवता है और वहां एकान्त में जो मुग्ध और चकित कर देनेवाला भव्य मंदिर है उस स्थान का नाम ‘देववन। मंदिर शीतकाल में बर्फ से ढका रहता है। मंदिर के कपाट खुलने के समय और विशेष धार्मिक असरों पर यहां अत्यधिक संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। ११ वीं से १६वीं शताब्दी के बीच देवदार की लकड़ियों से बना यह मंदिर आज भी सुगंध बिखेरता है।

यह पान स्थल हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे गढ़वाल के उत्तरकाशी देहरादून जनपदों के सरहद पर लगभग १०,००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। निकटतम मोटर मार्ग इस स्थल से १२ किमी दूर है। हनोल नामक सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल तक ही मोटर मार्ग की सुविधा है। हनोल में सम्पूर्ण क्षेत्र के आराध्य ईष्ट महासू देवता का अत्यंत कलात्मक प्राचीन मंदिर दर्शनीय है। यह देवता गढ़वाल सहित हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र जुब्बल, सिरमौर, बुशैहर, जौनसार, बार और रांई परगने में विशेष रूप से पूजा जाता है। इस देवता का प्रत्यक्ष और प्रबल प्रभाव आज भी क्षेत्र में देखा जाता है। यदि दो पक्षों में झगड़ा चल रहा हो तो मुकदमे की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि देवपंचायत बैठती है और देवता का आदेश ही सर्वमान्य होता है। न्यायप्रियता के लिए यह दयालु देवता बहुत प्रसिद्ध हैं।

बड़ी विपदा पर लोग देववन के देव दरबार में फरियाद लेकर पहुंचते हैं। यह देव दरबार बड़ा विचित्र होता है। देवता का एक प्रवक्ता होता है जिसे माली कहते हैं। उस व्यक्ति में देवांश प्रवेश करता है। जब वह कांपता है तो समझा जाता है अब देवता ने प्रवेश कर लिया है। फिर दुखी व्यक्तियों से एक-एक कर बातें करता है। देवता जो कुछ बोलता है उसे देववाणी समझ लिया जाता है और जो निर्णय देता है उसे अटल मान लिया जाता है। संकटग्रस्त व्यक्तियों पर इन बातों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

यहां का भव्य मंदिर छत्रशैली का अनुपम उदाहरण है। स्थापत्य कला का जैसा जादुई सौन्दर्य यहां छिटका हुआ है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। दृष्टि इन कलाकृतियों के मोहक आकर्षण में बंधी की बंधी रह जाती हैं। यहां के लिए मान्यता है कि बहुत समय पहले इस क्षेत्र के टौंस, पब्बर नदी घाटी में राक्षसों का अराजकतापूर्ण राज चल रहा था। तपस्यारत ऋषि-मुनि बेहद आकुल और व्यथित थे। जब राक्षसों का आतंक बढ़ने लगा तो सभी ऋषि -मुनि देन आकर महाशिव की आराधना करने लगे। तब रघुकुल के छत्रपति राजा राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ने अपने सहचरों की मदद से सभी राक्षसों का वध किया।

जनश्रुति के अनुसार कालान्तर में राजा दशरथ के चारों पुत्र इस पर्वतीय क्षेत्र में चार भाइयों के रूप अवतरित हुए। मुख्यत: इनका नाम महासू है। इन चारों का नाम है- चलदा महासू, पासी महासू, बौठा महासू, और बासीक महासू। इन चारों देव भाइयों के सेनापति योद्धाओं के नाम शेड़कुड़िया, गुडारू, कइला पीर, कपला आदि हैं। इस समूचे सीमान्त अन्तरप्रदेशीय क्षेत्र के लोग इन चार भाई महासू को अपना ईष्ट देवता मानते हैं। यत्र-तत्र इन देताओं के एक से बढ़कर एक भव्य कलात्मक खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

wah!